साथ ही, ये उपछाया चंद्र ग्रहण है यानी चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया सिर्फ एक तरफ रहने के कारण ये ग्रहण हर जगह नहीं देखा जा सकेगा। हालांकि, इसका असर यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, अंटार्कटिका, प्रशांत अटलांटिक और हिंद महासागर पर रहेगा। इस दौरान सभी मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं लेकिन उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर के कपाट नहीं बंद होते हैं जो प्राचीन परंपराओं और धार्मिक अर्थों से संबंधित होते हैं। तो चलिए आपको बताते हैं इसके पीछे की मुख्य वजह…
ग्रहण में खुले रहते हैं मंदिर के कपाट
दरअसल, उज्जैन के महाकाल मंदिर में ग्रहण के दौरान प्रवेश और पूजा की अनुमति दी जाती है। इस मंदिर में ग्रहण के समय अधिकांश प्रवासी भक्त उपस्थित होते हैं और उन्हें दर्शन कराए जाते हैं। इस मंदिर को भारत के सबसे पवित्र शिव मंदिरों में से एक माना जाता है और इसे भारत की आठ ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।
इस कारण नहीं पड़ता अशुभ प्रभाव
मंदिर के पुजारी का कहना है कि, हिन्दू धर्म में महादेव को देवों का देव माना जाता है और वे लय और प्रलय के अधिपति हैं। जिन्होंने संपूर्ण सृष्टि की रचना की है। जिनकी आराधना वैदिक काल से ही की जाती रही है। इसलिए ग्रहों और नक्षत्रों का उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। हालांकि, इस दौरान गर्भगृह में पुजारी एवं भक्तों का प्रवेश वर्जित रहता है। वहीं, ग्रहण समाप्ति के बाद मंदिर को धोकर शुद्ध कर दिया जाता है। जिसके बाद भगवान की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है।
ग्रहण के बाद करें साफ-सफाई
बता दें कि यदि ग्रहण दिखाई नहीं देता है तो सूतक भी नहीं लगता लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान राहु और केतु का नकारात्मक प्रभाव पृथ्वी पर रहता है। इसलिए ग्रहण के बाद घर की साफ-सफाई करना अच्छा माना जाता है। साथ ही, स्नान-ध्यान करना भी उचित होता है। यह धार्मिक आदर्शों का महत्वपूर्ण अंग है जो सावधान रहने और महादेव की पूजा उपासना करने का संकेत देता है। वैसे तो धर्म और विश्वासों से जुड़े विषय में व्यक्ति के अपने धार्मिक दृष्टिकोण और विश्वासों के आधार पर भिन्न-भिन्न विचार होते हैं।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)