Holi Traditions : होली रंगों का त्योहार है इसे अलग-अलग तरीके से अलग-अलग जगहों पर मनाया जाता है। होली से जुड़ी कई अनोखी परंपराएं भी है जिसे आज भी लोग मानते हैं। आज भी कई विद्वान है जो इन परंपराओं को मानते हैं। आज हम आपको होली से जुड़ी एक अनोखी परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं जो मध्य प्रदेश के खंडवा, बुरहानपुर, बेतूल, झाबुआ, अलीराजपुर और डिंडोरी में रहने वाले गोंड आदिवासी लोग मनाते हैं।
ये होली और रंगपंचमी के बाद मेघनाद को अपना इष्ट देव मानकर उनकी पूजा कर बकरे की बलि देते हैं। साथ ही प्रतिवर्ष रंग पंचमी से तेरस के बीच दो दिवसीय मेले का आयोजन भी किया जाता है। चलिए जानते हैं इस परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं तो चलिए जानते है –
Holi Traditions : ऐसी है परंपरा
जानकारी के मुताबिक, गोंड आदिवासियों लोगों की संख्या खंडवा के आदिवासी ब्लॉक खालवा में सबसे ज्यादा है। यहां सबसे ज्यादा लोग मेघनाथ की पूजा करते हैं। खास बात ये है कि मेघनाद के पर्व को बहुत ही खास तरीके से मनाते हैं। साथ ही मेले का भी आयोजन कर इस पर्व को खुशी से मनाया जाता है। इस दौरान झंडा दौड़ प्रतियोगिता और बैलगाड़ी दौड़ प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है।
डंडे से मारती है युवतियां
इसे में पेड़ को तेल और साबुन लगाकर चिकना किया जाता है। इसके अलावा खंबे पर लाल कपड़े में नारियल ,बतासे एवं नगद राशि को बंधा जाता है। उसके बाद प्रतियोगिता में भाग लेने वाले युवा इस खंबे पर चढ़ते हैं और ऊपर बंधा झंडा तोड़ने का प्रयास करते हैं। वहीं युवतियां हरे बांस की लकड़ी लेकर युवाओं को ऊपर चढ़ने से रोकती है और उन्हें मारती हैं। वहीं ढोल बजाकर ग्रामीण युवाओं का उत्साह बढ़ाते हैं।
ऐसे में जो भी प्रतियोगिता जीतता है उसे इनाम दिया जाता है। उसके बाद विधायक और वन मंत्री विजय शाह भी इस मेले में जाकर मेघनाथ की पूजा करते हैं। उसके बाद मेघबाबा को मुर्गे या बकरे की बलि चढ़ाई जाती है। गोंड आदिवासियों का मानना है कि उनके पूर्वज भगवान मेघनाद को खुश करने और अपनी मान-मन्नतें पूरी होने पर बलि चढ़ाने के लिए पूजा की जाती हैं।