MP News : मध्य प्रदेश के परिवहन आयुक्त ने अपने प्रमुख सचिव के आदेश को नहीं माना। दरअसल मामला VLT उपकरण से जुड़ा हुआ है जिसके माध्यम से हर सार्वजनिक वाहन में पैनिक बटन और जीपीएस सिस्टम लगाया जाना जरूरी कर दिया गया है। इस बारे में विभाग के प्रमुख सचिव फैज अहमद किदवई के लिखे गए पत्र के बावजूद परिवहन आयुक्त ने कोई कार्रवाई नहीं की जिसकी चलते आपरेटर अब हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं।
देश भर की तरह मध्यप्रदेश में भी परिवहन विभाग हर सार्वजनिक वाहन में पैनिक बटन और जीपीएस सिस्टम लगाने जा रहा है। जिसके माध्यम से न केवल वाहन की लोकेशन पता चल सकेगी बल्कि यात्रियों की सुरक्षा भी हो सकेगी। इसमें सुरक्षा की दृष्टि से विशेषकर महिला व बच्चों को केंद्र बिंदु में रखा गया है। मध्यप्रदेश में भोपाल में इसका कंट्रोल रूम बनाया जा रहा है जो अभी बनकर तैयार नहीं हुआ है।
लेकिन उससे पहले ही VLT उपकरण यानि पैनिक बटन और जीपीएस लगाने का गोरखधंधा शुरू हो गया है। सबसे पहले तो परिवहन विभाग की कमान संभाल रहे लोगों ने VLT उपकरण लगाने के लिए देश भर की अधिकृत करीब एक सैकड़ा कंपनियों में से केवल चार को ही अनुमति दी जो अब बढ़कर दस हो गई है। इसी बीच जब 28 अक्टूबर को निर्माणाधीन VLT कंट्रोल रूम का निरीक्षण करने परिवहन विभाग के प्रमुख सचिव फैज अहमद किदवई पहुंचे तो वहां पर बस मालिकों ने उन्हें परेशानी बताई और कहा कि जब कंट्रोल रूम शुरू नहीं हुआ तो फिर पैनिक बटन और जीपीएस की इतनी जल्दी क्यों।
शिकायत में यह भी कहा गया कि 4000 रु में लगने वाली डिवाइस 15000 रु में लगाई जा रही है जो सीधे-सीधे भ्रष्टाचार की ओर इशारा करती है। इस पर परिवहन विभाग के प्रमुख सचिव फैज ने परिवहन विभाग के आयुक्त संजय कुमार झा को एक पत्र लिखा।1 नवंबर को लिखे गए इस पत्र में फैज ने कंट्रोल रूम चालू न होने के चलते वाहनों में VLT उपकरण लगाने के लिए 4 माह का अतिरिक्त समय देने की बात लिखी जिस पर परिवहन आयुक्त ने कोई कार्रवाई नहीं की।
इसी पत्र को लेकर एक ऑपरेटर हाई कोर्ट गया और हाई कोर्ट ने रिट पिटीशन 28177/2022 में पारित आदेश में 4 महीने का समय परिवहन आयुक्त को देने को कहा और इसका आधार प्रमुख सचिव के पत्र को बनाया।
उक्त आदेश में 4 महीने का समय दे दिया गया तो उसे सभी के लिए लागू होना था। लेकिन परिवहन विभाग के आला अधिकारियों ने इसे भी अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ कर लागू किया।
इसके उपरांत 10 बस मालिकों के द्वारा माननीय हाईकोर्ट में इसी मामले में एक याचिका WP. 27984/2022 और लगाई गई, जिसमें आज दिनांक 9.12.2022 को माननीय हाईकोर्ट ने पारित आदेश में भी उसी तरह के आदेश जारी कर 4 माह का समय बस मालिको को दिए जाने के निर्देश दिए है।
परंतु बस मालिको शक है कि इस आदेश को भी तोड़ मरोड़ कर इसका गलत अर्थ निकाला जा सकता है।
यह बात समझ से परे है कि माननीय हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना करने का दुस्साहस कैसे किया जा सकता है, और इसके पीछे क्या निहित स्वार्थ या अन्य कारण हो सकते हैं ?
परिवहन विभाग के आला अधिकारी बस मालिकों को यह अवसर दे रहे हैं कि वह माननीय उच्च न्यायालय की अवमानना की याचिका दायर करें।
साथ ही हर बस मालिक इस तरह की याचिका लगाने को मजबूर हो जाएगा जिसके दुष्परिणाम स्वरूप माननीय उच्च न्यायालय में अकारण ही मुकदमों की भीड़ बढ़ जाएगी। जिसका सामना शासन को भी करना पड़ेगा।