उप-चुनाव में मिली प्रचंड जीत के बाद सिंधिया का बढ़ा कद, अब पार्टी के सामने रखी यह डिमांड

Gaurav Sharma
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ज्योतिरादित्य सिंधिया

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मध्‍य प्रदेश (Madhya Pradesh) में हुए 28 विधानसभा (Vidhansabha) सीटों (Seat) के उप चुनाव (By-election) के आने के बाद से भाजपा (BJP) तो उत्‍साहित है ही, वहीं उससे भी कहीं ज्‍यादा उत्‍साहित कुछ समय पहले भाजपा ज्वाइन करने वाले पूर्व कांग्रेसी (Former Congress Man) ज्‍योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) और उनके समर्थक (Supporters) हैं। इसकी वजह बेहद साफ है। उन्‍होंने इस चुनाव में न सिर्फ कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाते हुए मतदाताओं (Voters) को अपनी तरफ रिझाने में सफलता हासिल की है, बल्कि इस चुनाव में भाजपा को जीत दिलाकर ये भी बता दिया कि इस क्षेत्र में उनका वर्चस्‍व पहले की ही तरह जस का तस बना हुआ है। यही उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि भी है।

मध्य प्रदेश में बीजेपी को मिली इस प्रचंड जीत के बाद अब ज्योतिरादित्य सिंधिया एक बार फिर कॉन्फिडेंट हुए हैं। सिंधिया के इस कॉन्फिडेंस  ने बीजेपी के सामने उनकी डिमांड भी बढ़ा दी है, और वह अपने समर्थकों के लिए शिवराज सरकार और पार्टी संगठन के सामने नई मांग रख रहे हैं। दरअसल 28 सीटों पर हुए उप-चुनाव में सिंधिया के तीन मंत्री चुनाव हार गए है। इसमें ऐंदल सिंह कंसाना, गिर्राज दंडोतिया और इमरती देवी का नाम शामिल हैं। तीनो समर्थकों के हारने पर सिंधिया ने तीनों पूर्व मंत्रियों को निगम मंडल में एडजस्ट करने की मांग रखी है।

वहीं सिंधिया चाहते है कि अगर इन तीनों हारे हुए मंत्रियों को निगम मंडल में एडजस्ट नहीं किया जाता है तो तीन रिक्त हुई मंत्रियों की सीट पर उनके समर्थकों को मंत्री बनाया जाए। बताया जा रहा है, कि बीजेपी सिंधिया की पहली मांग से सहमत नजर आ रही है और हारे हुए तीन मंत्रियों में से किसी दो को निगम मंडल में जगह दी जा सकती है।

उधर बीजेपी नहीं चाहती है कि सिंधिया खेमे को एडजस्ट करने के चक्कर में कहीं भी ये संदेश नहीं जाए, कि पार्टी किसी भी तरह की दुविधा से जूझ रही है। इसलिए वह अपने पुराने नेताओं के साध सिंधिया समर्थकों को भी बड़ी सफाई के साथ एडजस्ट करने में जुटी हुई है।

बता दें आने वाले समय में नगरीय निकाय के चुनावी भी है, ऐसे में एक बार फिर से बीजेपी को मैदान में उतरना है। ऐसी स्थिति में किसी नेता को नाराज करना बीजेपी के लिए भारी पड़ सकता है इसलिए हर किसी को उपकृत करने के लिए वह अलग अलग परिषद और समितियों में एडजस्ट करने पर भी विचार कर रही है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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