भारत में एक से बढ़कर एक गांव हैं, जहां लोग खेती-बागवानी आदि पर निर्भर हैं। इससे देश की आर्थिक व्यवस्था को मजबूती मिलती है, क्योंकि हम सभी जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसके अलावा, हमारा समाज पुरुष प्रधान माना जाता है। घर की संपत्ति से लेकर फैसलों तक पहला अधिकार पुरुषों का होता है।
हालांकि, बदलते जमाने के साथ नियम-कानूनों में भी बदलाव हो चुके हैं। अब महिलाओं को भी कानून द्वारा पुरुषों के बराबर अधिकार दिए गए हैं, जिससे वे स्वतंत्र होकर कोई भी निर्णय ले सकती हैं। उनका सम्मान करना सभी के लिए अनिवार्य है।

खासी आदिवासी
इन सब से हटकर आज हम आपको भारत में रहने वाले एक ऐसे समुदाय से रूबरू करवाने जा रहे हैं, जहां पुरुष नहीं बल्कि महिला प्रधान समाज है। दरअसल, मेघालय में पाई जाने वाली खासी आदिवासी जनजाति मातृसत्तात्मक प्रणाली को अपनाती है। यहां की खास बात यह है कि जब पुरुष परिवार की सबसे छोटी बेटी से विवाह करता है, तो विवाह के बाद दूल्हे को दुल्हन के घर में आकर रहना पड़ता है। महिलाएं यहां पारिवारिक संपत्ति की उत्तराधिकारी होती हैं।
खासी बोली
खासी जनजाति मेघालय की तीन प्रमुख जनजातियों में से एक है। इन समुदायों के लोग स्वयं को विभिन्न उप-समुदायों में बांटते हैं, लेकिन मूल रूप से ये सभी खासी समुदाय के ही अंतर्गत आते हैं। स्थानीय भाषा के तौर पर मम जाती है। इनके नियमानुसार, जंगल को काटना और वन्य जीवों का शिकार करना वर्जित माना जाता है। वे जंगलों को देवता का घर मानते हैं और नदी, पहाड़ व बिच्छू की पूजा करते हैं।
आप भी अवश्य जाएं
यह समुदाय अपने आप में बहुत खास है। अक्सर विलेज टूरिज्म में रुचि रखने वाले लोग इस समुदाय को करीब से जानने और समझने के लिए यहां आते हैं। खासी जनजाति के लोक नृत्य, गीत और पारंपरिक पोशाक उनकी सांस्कृतिक विरासत को दिखाते हैं। ये लोग 7 दिन तक चलने वाले पर्व भी मनाते हैं। यदि कभी आपको अवसर मिले, तो आप भी इस महिला प्रधान गांव में अवश्य जाएं। यहां आपको भारत की संस्कृति और परंपरा का अनोखा संगम देखने को मिलेगा।