भारत का हर गांव हर शहर अपनी अलग संस्कृति और परंपराओं के लिए जाना जाता है। हजारों साल पुराने इतिहास को समेटे गांव अपने आप में काफी अनोखा होता है, जिस कारण यह देश भर में प्रसिद्ध भी हो जाता है। गांव का स्थानीय खान-पान, पहनावा-ओढ़ावा इसे सबसे अलग बनाती है। आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां किसी भी देश का कानून नहीं चलता है, बल्कि यहां खुद की संसद और संविधान है।
अमूमन भारत में रहने वाले सभी लोग संविधान का पालन करते हैं और वहां के कानून को मानते हैं, लेकिन यहां की अनोखी परंपरा इस गांव को सबसे अलग बनाती है।

मलाणा गांव (Malana Village)
दरअसल, इस गांव का नाम मलाणा है जो कि हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित है। यह गांव अपने अलग कानून के लिए जाना जाता है। यहां आने वाले पर्यटकों को किसी भी चीज को छूने की इजाजत नहीं है। यदि वह ऐसा करते हैं, तो इसके लिए उन्हें ढाई हजार रुपए तक का जुर्माना लगा दिया जाता है। यहां तक की खाने पीने का सामान खरीदने के लिए भी टूरिस्ट दुकान के बाहर ही पैसे रख देते हैं। वहीं, दुकानदार भी उन चीजों को दुकान के सामने जमीन पर रख देता है।
अनोखी परंपरा
यहां एक और अजीबोगरीब परंपरा निभाई जाती है, जब यहां दो पक्षों में विवाद हो जाता है, तो दो बकरे मंगाए जाते हैं। इसके बाद दोनों पक्षों द्वारा ले आए बकरों के पैर में चीरा लगाकर जहर भर दिया जाता है। इसके बाद जिस पक्ष का बकरा पहले मरता है, उसे ही दोषी माना जाता है।
जमलू देवता करते हैं फैसला
यहां टूरिस्ट को स्टे करने या रात में घूमने की इजाजत नहीं होती, बल्कि वह दिन में घूम सकते हैं। शाम होते ही उन्हें गांव से बाहर निकाल दिया जाता है। हालांकि, अब समय के साथ सब कुछ बदल चुका है। यहां किसी भी मसलों का फैसला सदन की कार्यवाही के दौरान ही हो जाता है। यदि किसी कारणवश सदन फैसला नहीं ले पाता, तो जमलू देवता इसका फैसला करते हैं जो उनके लिए अंतिम फैसला होता है।
सिकंदर के सैनिक के वंशज
यहां के लोग भारत के संविधान का पालन नहीं करते, बल्कि यहां के लोग खुद न्यायपालिका और कार्यपालिका होते हैं। संसद भवन के तौर पर यहां एक चौपाल है, जहां सारे विवादों को सुलझाया जाता है और यहीं पर फैसला सुना दिया जाता है। इस गांव के लोग खुद को सिकंदर के सैनिक के वंशज बताते हैं। यहां आपको सिकंदर के समय की तलवार देखने को मिलेगी।