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Wed, Dec 17, 2025

दिल्ली में स्कूल फीस नियंत्रण बिल पर बवाल! AAP-BJP में टकराव, अभिभावकों को राहत या प्राइवेट स्कूलों को छूट?

Written by:Vijay Choudhary
Published:
आतिशी ने यह क्लिप सोशल मीडिया पर भी शेयर की और दावा किया कि बीजेपी खुलकर प्राइवेट स्कूलों के साथ खड़ी है।
दिल्ली में स्कूल फीस नियंत्रण बिल पर बवाल! AAP-BJP में टकराव, अभिभावकों को राहत या प्राइवेट स्कूलों को छूट?

आतिशी, AAP, नेता

दिल्ली विधानसभा में पेश हुए स्कूल फीस रेगुलेशन बिल को लेकर सियासी पारा चढ़ गया है। आम आदमी पार्टी (AAP) ने इस बिल को प्राइवेट स्कूलों के हित में बताते हुए बीजेपी पर शिक्षा को “काला धंधा” बनाने का गंभीर आरोप लगाया है। वहीं बीजेपी का दावा है कि यह बिल पारदर्शिता बढ़ाने और निजी स्कूलों की जवाबदेही तय करने के लिए लाया गया है। AAP की नेता और दिल्ली की शिक्षा मंत्री रह चुकीं आतिशी ने विधानसभा में बिल का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि “यह बिल निजी स्कूलों को मनमानी करने का कानूनी लाइसेंस देगा। इसमें माता-पिता की शिकायतों को दर्ज करने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। इससे मिडिल क्लास की जेबें और ज्यादा कटेंगी।”

मिडिल क्लास की जेब काट रही बीजेपी

आतिशी ने बीजेपी विधायक राजकुमार भाटिया के उस बयान का हवाला दिया जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि “इस बिल की मंशा है कि प्राइवेट स्कूल फीस बढ़ा सकें।” आतिशी ने यह क्लिप सोशल मीडिया पर भी शेयर की और दावा किया कि बीजेपी खुलकर प्राइवेट स्कूलों के साथ खड़ी है। पूर्व डिप्टी सीएम और दिल्ली के पूर्व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने भी ट्वीट करते हुए लिखा कि- “बीजेपी ने शिक्षा को काला धंधा बना दिया है। अब स्कूलों के नाम पर मिडल क्लास की जेबें काटी जाएंगी और नेता व शिक्षा माफिया मालामाल होंगे।” उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी और प्राइवेट स्कूल मालिकों की मिली भगत अब सामने आ चुकी है।

फीस बढ़ोतरी पर रोक या खुली छूट?

इस बिल में सबसे ज्यादा विवाद का कारण वह व्यवस्था है जिसमें फीस बढ़ाने का निर्णय स्कूल प्रबंधन द्वारा लिया जाएगा और उस पर रोक लगाने के लिए 15% अभिभावकों का समर्थन जरूरी होगा। आतिशी ने उदाहरण देते हुए कहा कि- “अगर स्कूल में 3000 छात्र हैं, तो किसी फीस वृद्धि के विरोध में 450 अभिभावकों को संगठित होकर शिकायत करनी होगी। यह न तो व्यावहारिक है और न ही पारदर्शी।” इसके अलावा बिल में ऑडिट शब्द का एक बार भी उल्लेख नहीं किया गया है, यानी स्कूलों के वित्तीय रिकॉर्ड की जांच का कोई कानूनी प्रावधान नहीं रखा गया है। इससे स्कूलों को अपनी मर्जी से खर्च और फीस निर्धारण करने की छूट मिल जाएगी।

अभिभावकों की सीमित भूमिका

आतिशी के अनुसार, बिल के तहत जो फीस रेगुलेशन कमेटी बनाई जाएगी, उसकी अध्यक्षता खुद स्कूल की मैनेजमेंट करेगी। इसमें माता-पिता की भागीदारी सिर्फ नाममात्र की होगी। कमेटी में सिर्फ 5 अभिभावकों को शामिल किया जाएगा, वो भी किसी चुनाव के जरिए नहीं बल्कि पर्ची निकालकर तय होंगे। आतिशी ने कहा कि- “इस तरह की व्यवस्था अभिभावकों की आवाज को दबाने और सिर्फ स्कूल प्रशासन को ताकत देने के लिए की गई है।”

शिक्षा सुधार बनाम राजनीतिक लाभ

आम आदमी पार्टी ने इस बिल में कई संशोधन प्रस्ताव भी पेश किए हैं। पार्टी की मांग है कि- फीस बढ़ाने से पहले स्वतंत्र ऑडिट जरूरी हो, अभिभावकों को समान प्रतिनिधित्व मिले, शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया को सरल और व्यक्तिगत बनाया जाए, फीस वृद्धि के खिलाफ कोर्ट में चुनौती देने की छूट मिले। वहीं बीजेपी ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि यह बिल शिक्षा व्यवस्था को व्यवस्थित करने की दिशा में एक जरूरी कदम है। बीजेपी का कहना है कि AAP खुद स्कूलों के नाम पर राजनीति कर रही है और यह बिल बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाने की दिशा में लाया गया है।

दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था पर राजनीति

दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था पिछले एक दशक से आम आदमी पार्टी की प्राथमिकताओं में रही है। सरकारी स्कूलों के सुधारों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है, लेकिन निजी स्कूलों की फीस वृद्धि हमेशा से विवादों में रही है। 2016 में दिल्ली हाई कोर्ट ने भी कई निजी स्कूलों की मनमानी फीस वसूली को लेकर फटकार लगाई थी। सरकार की तरफ से बनाए गए नियमों के बावजूद, अभिभावकों को हर साल फीस वृद्धि, किताबों व यूनिफॉर्म के नाम पर ज्यादा पैसे वसूलने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। MyGov India के अनुसार, दिल्ली में कुल 5,600 से अधिक स्कूल हैं, जिनमें से लगभग 2,000 निजी स्कूल हैं। इनमें करीब 20 लाख से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं, और इनमें से एक बड़ी संख्या मिडल क्लास परिवारों से आती है जो फीस वृद्धि के बोझ से परेशान हैं।