जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने असम में चल रहे अतिक्रमण हटाओ अभियान की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि इस अभियान के तहत लोगों को धर्म के आधार पर बांटा जा रहा है ताकि सत्ता हासिल की जा सके। मदनी ने आरोप लगाया कि समुदाय को मिया, अज्ञात या संदिग्ध जैसे अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह रवैया निष्कासन की प्रक्रिया से भी अधिक दुखदायी है। अगर कोई संदिग्ध है तो संदेह दूर करने के उचित तरीके अपनाए जाने चाहिए, न कि अपमानजनक व्यवहार।
मौलाना मदनी ने बताया कि उन्होंने असम के कई क्षेत्रों का दौरा किया और वहां की स्थिति देखकर उन्हें गहरा दुख हुआ। उन्होंने कहा कि निष्कासन अभियान जिस तरह से चलाया जा रहा है, वह अमानवीय और दुखदायी है। मदनी ने जोर देकर कहा कि देश और समाज एक व्यवस्था के तहत चलते हैं, और अगर इस व्यवस्था का उल्लंघन होता है या इसे कुचला जाता है तो यह समाज के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने इसकी कड़ी निंदा की और कहा कि ऐसी स्थिति को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
सरकार का रुख और पुलिस की निगरानी
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने बताया कि जमीयत उलमा-ए-हिंद का एक सात सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल, जिसका नेतृत्व मौलाना मदनी कर रहे हैं, ग्वालपाड़ा जिले का दौरा कर रहा है। उन्होंने कहा कि बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र के आगामी चुनाव और जिले की संवेदनशील स्थिति को देखते हुए पुलिस स्थिति पर कड़ी नजर रख रही है। जिला प्रशासन भी सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए पूरी तरह सतर्क है ताकि शांति और स्थिरता सुनिश्चित हो सके।
अभियान का प्रभाव और जमीयत की आपत्ति
असम में 2021 से चल रहे अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत 160 वर्ग किलोमीटर से अधिक जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराया गया है, जिससे 50 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं, विशेष रूप से बांग्ला भाषी मुस्लिम परिवार। जमीयत उलमा-ए-हिंद ने इस अभियान की आलोचना करते हुए कहा कि यह न केवल लोगों को बेघर कर रहा है, बल्कि सामाजिक सौहार्द को भी नुकसान पहुंचा रहा है। संगठन ने मांग की है कि निष्कासन की प्रक्रिया में पारदर्शिता और मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाए।





