दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर 29 अक्टूबर, 2018 को दिए गए उस आदेश को वापस लेने की मांग की है, जिसमें 10 साल से पुराने डीजल और 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहनों पर प्रतिबंध लगाया गया था। यह आदेश नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के 2014 के फैसले को सही ठहराता है। सरकार चाहती है कि अदालत इस फैसले पर दोबारा विचार करे और कोई अधिक व्यावहारिक और तकनीकी समाधान निकाले, जिससे प्रदूषण पर नियंत्रण हो सके लेकिन जनता को असुविधा न हो।
सरकार का तर्क: उम्र नहीं, प्रदूषण मापदंड हो आधार
दिल्ली सरकार का कहना है कि सिर्फ गाड़ियों की उम्र के आधार पर उन्हें सड़क से हटाना तर्कसंगत नहीं है। कई पुराने वाहन आज भी अच्छे रख-रखाव में हैं और कम प्रदूषण करते हैं। इसके बजाय, सरकार चाहती है कि सभी वाहनों की प्रदूषण जांच होनी चाहिए। जो वाहन तय मानकों से अधिक धुआं छोड़ते हैं, उन्हीं पर सख्त कार्रवाई की जाए। इससे न केवल प्रदूषण में कमी लाई जा सकती है बल्कि लोगों को भी बेवजह की परेशानी से बचाया जा सकता है।
NGT और सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेशों का विवरण
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 26 नवंबर, 2014 को आदेश दिया था कि 15 साल से पुराने किसी भी वाहन को सार्वजनिक जगहों पर पार्क नहीं किया जा सकता। यदि ऐसा कोई वाहन खड़ा पाया जाता है तो उसे पुलिस द्वारा जब्त किया जाएगा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी इस आदेश को मान्यता दी और कहा कि 10 साल से पुराने डीजल और 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहनों को एनसीआर क्षेत्र में चलने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इसके साथ ही निर्देश दिए गए थे कि ऐसे वाहन पाए जाने पर मोटर व्हीकल एक्ट के तहत जब्त किए जाएं।
सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई और संभावित असर
अब सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर 28 जुलाई को सुनवाई कर सकता है। यदि कोर्ट इस पर पुनर्विचार करता है और पुराने आदेश में कुछ बदलाव करता है, तो लाखों वाहन मालिकों को राहत मिल सकती है। हालांकि, यह भी देखना होगा कि कोर्ट पर्यावरण संतुलन और सार्वजनिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए क्या निर्णय लेता है। दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण एक गंभीर संकट है, और इस दिशा में कोई भी फैसला व्यापक असर डाल सकता है।





