स्कूल-कॉलेज के हिजाब मामले में बड़ा फैसला, जानें हाईकोर्ट ने क्या कहा, कई जिलों में धारा 144

Pooja Khodani
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कर्नाटक हाईकोर्ट

बेंगलुरू, डेस्क रिपोर्ट। स्कूल-कॉलेजों में हिजाब (Hijab In School College) पहनने के मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने बड़ा फैसला सुनाया है।हाईकोर्ट ने स्कूल कॉलेजों में हिजाब बैन के फैसले को चुनौती देने वालीं छात्राओं की याचिकाओं को खारिज कर दिया है। अब  स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पहनने की इजाजत नहीं मिलेगी।  कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि  हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।  स्टूडेंट्स स्कूल या कॉलेज की तयशुदा यूनिफॉर्म पहनने से इनकार नहीं कर सकते।

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यह याचिका कर्नाटक हाईकोर्ट में उडुपी की लड़कियों ने लगाई थी, जिसमें स्कूलों में हिजाब पहनने की इजाजत की मांग की गई थी। हाईकोर्ट ने हिजाब के समर्थन में मुस्लिम लड़कियों समेत दूसरे लोगों की तरफ से लगाई गईं सभी 8 याचिकाएं खारिज कर दीं।हाईकोर्ट ने साफ कहा कि  शिक्षण संस्थान इस तरह के पहनावे और हिजाब पर बैन लगा सकते हैं।स्कूल और कॉलेज को अपनी ड्रेस कोड तय करने का अधिकार है। अपने आदेश के साथ ही हाई कोर्ट में हिजाब की अनुमति मांगने वाली सभी याचिकाएं खारिज कर दीं।

चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण एस. दीक्षित और जस्टिस खाजी जयबुन्नेसा मोहियुद्दीन की तीन मेंबर वाली बेंच ने राज्य सरकार के 5 फरवरी को दिए गए आदेश को भी निरस्त करने से इनकार कर दिया, जिसमें स्कूल यूनिफॉर्म को जरूरी बताया गया था।हाईकोर्ट के फैसले से पहले ही राज्यभर में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे। कोप्पल, गडग, कलबुर्गी, दावणगेरे, हासन , शिवामोगा, बेलगांव, चिक्कबल्लापुर, बेंगलुरु और धारवाड़ में धारा 144 लागू कर दी गई है। शिवामोगा में तो स्कूल कॉलेज बंद कर दिए गए है और हाईकोर्ट के जजों के आवासों पर भी निगरानी कड़ी है।

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राजधानी बेंगलुरु समेत कर्नाटक के पांच जिलों में धारा 144 लागू करके सभी प्रकार के जुलूस और लोगों के जमावड़े पर रोक लगा दी गई थी।वही इस फैसले के बाद केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि छात्रों का मुख्य उद्देश्य और पर्पस बस ज्ञानार्जन करना ही होना चाहिए। वुमन पर्सनल लॉ बोर्ड की सदस्य शाइस्ता अंबर ने भी कहा कि फैसले का स्वागत है, अगर स्कूल में यूनिफॉर्म है तो वो फॉलो करिए।


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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)

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