उच्च न्यायपालिका के कामकाज और न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर लगातार बढ़ रहे दबाव के बीच सुशील कुमार मोदी के अध्यक्षता में कार्मिक लोक शिकायत कानून और न्याय पर संसदीय पैनल न्यायपालिका की बैठक आयोजित की गई थी। जिसमें न्यायाधीशों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता का आवाहन किया गया। इसमें अनुसूचित जाति जनजाति और OBC लोगों को भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व के मौके देने की बात की गई है।
सेवानिवृत्ति आयु को 62 से बढ़ाकर 65 वर्ष करने का भी समर्थन
इसके अलावा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु को 62 से बढ़ाकर 65 वर्ष करने का भी समर्थन किया गया। अगर ऐसा होता है तो उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु के बराबर हो जाएगी। इस बैठक में न्यायाधीशों द्वारा अपनी संपत्ति घोषित करने की आवश्यकता जैसे मुद्दों पर भी चर्चा की गई।
संसदीय पैनल के सदस्य द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु के बराबर लाने का समर्थन किया गया है। कहा जा रहा है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु 62 वर्ष है जबकि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष में सेवानिवृत्त होते ।हैं ऐसे में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को भी रिटायरमेंट 62 की जगह 65 वर्ष में किया जाना चाहिए।
UPA सरकार द्वारा 2010 में किया गया था प्रस्ताव तैयार
दरअसल यूपीए सरकार द्वारा 2010 में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु को बढ़ाकर 65 वर्ष करने का प्रस्ताव तैयार किया गया था। संविधान के 114 वें संशोधन के विधेयक पेश किए गए थे। हालांकि बिल शामिल नहीं होने की वजह से यह फैसला अधर में लटक गया था।
दिप्रिंट के मुताबिक मामले में जानकारों का कहना है कि सरकार हाईकोर्ट के जजों की सेवानिवृत्ति उम्र 62 से बढ़ाकर 65 करने के पक्ष में फिलहाल नजर नहीं आ रही है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ा दी जाती है तो वकीलों के लिए सर्वोच्च न्यायालय आने का कोई आकर्षण नहीं होगा। वह हाईकोर्ट में रहना पसंद करेंगे, ऐसे में अच्छी प्रतिभाएं सुप्रीम कोर्ट पहुंचने से वंचित रह जाएंगे।
इसके अलावा यदि सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाई जाती है तो अपीलीय न्यायाधिकरण में भी समस्याएं उत्पन्न होगी। वर्तमान में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश 62 साल की उम्र में सेवानिवृत्त होने के बाद अपीलीय न्यायाधिकरण में आवेदन कर सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं होने की स्थिति में अपीलीय न्यायाधिकरण में योग्य लोगों की कमी हो जाएगी।
सर्वोच्च न्यायालय की क्षेत्रीय पीठों की व्यवहार्यता के मुद्दे पर चर्चा
इसके अलावा संसदीय पैनल में सर्वोच्च न्यायालय की क्षेत्रीय पीठों की व्यवहार्यता के मुद्दे को भी उठाया गया है। ऐसा होने की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले की सफाई होगी। साथ ही लोग सुप्रीम कोर्ट पहुंचना चाहते हैं तो उन्हें दिल्ली आने की आवश्यकता नहीं होगी। डीएमके के राज्यसभा सांसद ने कहा कि दक्षिण राज्यों के लिए भी सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय पीठ होनी आवश्यक है। फिलहाल यह मामला विचाराधीन है और अदालत में लंबित है।
न्यायाधीशों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता को बनाए रखने को भी सर्वोच्च प्राथमिकता
न्याय विभाग के सचिव एसके के विचार सुनने के बाद बुलाई गई स्थायी समिति की बैठक के दौरान कई मुद्दे सामने आए हैं। न्यायिक प्रक्रिया और उनके सुधार पर बैठक आयोजित की गई थी। इस बैठक में न्यायाधीशों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता को बनाए रखने को भी सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। सूत्रों के मुताबिक वर्तमान में न्यायपालिका में एससी-एसटी और ओबीसी का प्रतिनिधित्व बेहद कम है।
संसदीय पैनल के साथ जारी किए गए आंकड़ों के तहत 537 उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को 2018 में नियुक्ति दी गई थी जिनमें से 424 सामान्य श्रेणी के जबकि 57 ओबीसी श्रेणी के थे। अनुसूचित जाति के 15 अनुसूचित जनजाति के साथ और अल्पसंख्यक के 14 न्यायाधीश की नियुक्ति हुई थी। वही सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने और एससी, एसटी और ओबीसी का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए बैठक में चर्चा की गई।