तमिलनाडु की सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम को बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली। कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के नाम का उपयोग उनकी सरकार द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं में करने पर रोक लगाई गई थी। यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अगले साल तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां डीएमके और उसकी सहयोगी कांग्रेस का मुकाबला अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से होगा।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने एआईएडीएमके सांसद सी वी शनमुगम को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने उनकी याचिका को केवल डीएमके को निशाना बनाने वाला और चुनाव आयोग पर अनुचित टिप्पणी करने वाला बताया। शनमुगम को अपनी याचिका के लिए राज्य को 10 लाख रुपये का कानूनी खर्च देना होगा, नहीं तो उनके खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज होगा। कोर्ट ने कहा कि इस राशि का उपयोग गरीबों की मदद के लिए किया जाए।
…ताकि किसी की शर्मिंदगी न हो
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देशभर में योजनाओं को राजनीतिक नेताओं के नाम पर शुरू करना आम बात है। तमिलनाडु ने ऐसे 40 उदाहरण दिए, लेकिन कोर्ट ने इनका नाम लेने से परहेज किया ताकि किसी की शर्मिंदगी न हो। कोर्ट ने शनमुगम पर सवाल उठाया कि उन्होंने केवल डीएमके के खिलाफ याचिका दायर की और चुनाव आयोग को फैसला करने का समय दिए बिना हाई कोर्ट का रुख किया। कोर्ट ने इसे कानून का दुरुपयोग बताया।
योजनाओं को नेताओं के नाम पर चलाना
वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी और अभिषेक सिंघवी ने डीएमके का पक्ष रखते हुए कहा कि पहले कोई भी फैसला योजनाओं को नेताओं के नाम पर चलाने से नहीं रोकता। सिंघवी ने बताया कि एआईएडीएमके ने भी पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता के लिए अम्मा शब्द का उपयोग कई योजनाओं में किया था। यह फैसला डीएमके को अपनी कल्याणकारी योजनाओं को मुख्यमंत्री के नाम से जोड़ने की अनुमति देता है, जो आगामी चुनावों में उनकी रणनीति को मजबूत करेगा।





