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Thu, Dec 18, 2025

राजनीतिक दल इस समय एनजीओ की तरह करें काम, बिहार में SIR को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा

Written by:Mini Pandey
Published:
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुझाव दिया कि आयोग 1 अगस्त को प्रकाशित होने वाली प्रारंभिक सूची में हटाए गए लोगों के नाम शामिल करे।
राजनीतिक दल इस समय एनजीओ की तरह करें काम, बिहार में SIR को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बिहार मतदाता सूची विवाद पर सुनवाई करते हुए राजनीतिक दलों को इस समय एनजीओ की तरह काम करने की सलाह दी। कोर्ट ने निर्वाचन आयोग की ओर से नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले विशेष गहन संशोधन पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने विपक्षी दलों से कहा कि वे जमीन पर उतरें और वास्तविक मतदाताओं के बहिष्करण के सबूत लाएं ताकि उनकी शिकायत को बल मिले। जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने कहा, “अगर बड़े पैमाने पर मतदाताओं का बहिष्करण हो रहा है, तो हम तुरंत हस्तक्षेप करेंगे। 15 लोगों को लाएं जो कहें कि वे जीवित हैं।”

निर्वाचन आयोग ने कोर्ट को बताया कि 65 लाख लोग, जो मृत हैं या राज्य से बाहर चले गए हैं, उन्हें प्रारंभिक मतदाता सूची से हटाया गया है। आयोग ने कहा कि हटाए गए मतदाताओं को अपील के लिए 30 दिन का समय दिया गया है और आपत्ति जताने वाले राजनीतिक दलों को मतदाताओं की मदद करनी चाहिए। कोर्ट ने सभी पक्षों को तर्क समाप्त करने के लिए समय सीमा तय की और अगली सुनवाई 12 अगस्त को निर्धारित की। जस्टिस सूर्य कांत ने कहा, “राजनीतिक दलों को इस समय एनजीओ की तरह काम करना चाहिए।”

कपिल सिब्बल ने दिया सुझाव

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुझाव दिया कि आयोग 1 अगस्त को प्रकाशित होने वाली प्रारंभिक सूची में हटाए गए लोगों के नाम शामिल करे। कोर्ट ने कहा, “अगर प्रारंभिक सूची में हटाए गए लोगों का जिक्र नहीं है तो आप इसे हमारे संज्ञान में ला सकते हैं।” कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि लोग आधार जैसे सामान्य सरकारी पहचान पत्रों का उपयोग मतदाता सूची में अपने नाम सत्यापित करने के लिए कर सकें। जस्टिस सूर्य कांत ने कहा, “आधिकारिक दस्तावेजों की सत्यता का अनुमान होता है। आधार और ई-पीआईसी के साथ आगे बढ़ें। दुनिया का कोई भी दस्तावेज जाली हो सकता है।”

पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाए

विपक्ष ने मतदाता सूची संशोधन की पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं, दावा किया कि यह उन समुदायों को हटाने के लिए बनाया गया है जो पारंपरिक रूप से उनके पक्ष में वोट करते हैं। निर्वाचन आयोग ने हालांकि कहा कि यह प्रक्रिया आवश्यक है क्योंकि आखिरी संशोधन 2003 में हुआ था और कोई भी पात्र मतदाता सूची से बाहर नहीं रहेगा। यह विवाद संसद में भी गूंजा, जहां विपक्ष ने इसे जोरदार तरीके से उठाया। कोर्ट ने हालांकि संशोधन प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जो 25 जुलाई तक 99.8 प्रतिशत मतदाताओं को कवर कर चुकी है।