भारत में कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। हालिया आंकड़ों के अनुसार, देश में हर 11 में से एक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में कैंसर होने का खतरा है। वर्ष 2015-2019 के बीच 43 जनसंख्या-आधारित कैंसर रजिस्ट्री (पीबीसीआर) के विश्लेषण से पता चलता है कि 2024 में भारत में लगभग 15.6 लाख नए कैंसर मामले दर्ज किए गए और इस बीमारी से 8.74 लाख लोगों की मृत्यु हुई। विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों में कैंसर की दर सबसे अधिक है, जहां सामाजिक-सांस्कृतिक कारक और जीवनशैली इस जोखिम को बढ़ा रहे हैं।
आंकड़ों के मुताबिक, 51.1% कैंसर मामले महिलाओं में दर्ज किए गए, लेकिन उनकी मृत्यु दर 45% है जो पुरुषों की तुलना में कम है। डॉ. प्रशांत माथुर (आईसीएमआर के नेशनल सेंटर फॉर डिजीज इंफॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च के निदेशक) ने बताया कि महिलाओं में स्तन और गर्भाशय ग्रीवा कैंसर के मामले 40% हैं, जो प्रारंभिक जांच से आसानी से पता लगाए जा सकते हैं। प्रारंभिक निदान के कारण इनका उपचार संभव है जिससे महिलाओं में बेहतर परिणाम देखे गए हैं।
पुरुषों में ओरल कैंसर की बढ़ती समस्या
पुरुषों में फेफड़े और पेट का कैंसर आम है, लेकिन हाल के वर्षों में ओरल कैंसर ने फेफड़ों के कैंसर को पीछे छोड़ दिया है। तंबाकू की खपत में कमी के बावजूद, शराब का सेवन ओरल, मुंह, गले, पेट और लीवर कैंसर के जोखिम को बढ़ा रहा है। डॉ. अभिषेक शंकर, एम्स के ऑन्कोलॉजिस्ट, ने बताया कि फेफड़ों के कैंसर का देर से पता चलना इसकी उच्च मृत्यु दर का कारण है, जबकि स्तन कैंसर का प्रारंभिक लक्षण आसानी से पहचाना जा सकता है।
पूर्वोत्तर में सबसे अधिक जोखिम
पूर्वोत्तर राज्यों विशेष रूप से मिजोरम में कैंसर का खतरा सबसे अधिक है, जहां पुरुषों में 21.1% और महिलाओं में 18.9% लोग प्रभावित हैं। तंबाकू, मसालेदार और स्मोक्ड भोजन और एचपीवी जैसे संक्रमण इसकी मुख्य वजह हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 30-50% कैंसर को जीवनशैली में बदलाव, नियमित जांच, टीकाकरण और जागरूकता से रोका जा सकता है। भारत में कैंसर से निपटने के लिए प्रारंभिक कार्रवाई और जन जागरूकता बेहद जरूरी है।





