MP Breaking News
Wed, Dec 17, 2025

“कुर्सी सेवा के लिए है, घमंड के लिए नहीं” – CJI भूषण गवई का न्यायपालिका को नैतिक संदेश

Written by:Vijay Choudhary
Published:
“कुर्सी सेवा के लिए है, घमंड के लिए नहीं” – CJI भूषण गवई का न्यायपालिका को नैतिक संदेश

जस्टिस गवई

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने हाल ही में महाराष्ट्र के अमरावती जिले के दर्यापुर में नवनिर्मित न्यायिक भवन के उद्घाटन के अवसर पर एक सशक्त नैतिक संदेश दिया। उन्होंने पद और कुर्सी से जुड़ी मानसिकता पर गहराई से प्रकाश डालते हुए कहा कि यह कुर्सी घमंड का प्रतीक नहीं बल्कि जनसेवा का एक साधन है। यदि यह कुर्सी सिर चढ़ जाए, तो यह सेवा नहीं, बल्कि पाप बन जाती है।

इस उद्घाटन समारोह में न्यायपालिका के कई वरिष्ठ अधिकारी, जिला प्रशासन, पुलिस अधिकारी, वकील समुदाय के सदस्य और बड़ी संख्या में आम नागरिक उपस्थित थे। CJI गवई के वक्तव्य ने न सिर्फ उपस्थित जनसमूह को बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र को आत्मविश्लेषण के लिए प्रेरित किया।

दिखा जनसंपर्क और सेवा का भाव

28.54 करोड़ रुपये की लागत से बनी दर्यापुर-अंजनगांव न्यायालय की यह इमारत न केवल आधुनिक सुविधाओं से लैस है, बल्कि यह राज्य सरकार की न्याय व्यवस्था को सुदृढ़ करने की प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है। इस इमारत में सिविल और क्रिमिनल दोनों प्रकार के मामलों की सुनवाई हो सकेगी। CJI गवई ने इस अवसर को जनता और न्यायपालिका के बीच की दूरी को घटाने का एक माध्यम बताया।

उन्होंने कहा कि आम जनता के लिए न्याय तक पहुंच आसान होनी चाहिए, और इस प्रकार के विकासात्मक कार्य उसी दिशा में एक बड़ा कदम हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह भवन केवल ईंट-पत्थरों से बना ढांचा नहीं है, बल्कि यह न्याय के प्रति समर्पण और विश्वास का प्रतीक है।

न्यायपालिका में बढ़ती औपचारिकता पर जताई चिंता

CJI भूषण गवई का पूरा संबोधन पद के प्रति समर्पण और सेवा भाव को केंद्र में रखकर था। उन्होंने कहा, “यह कुर्सी सेवा के लिए है, घमंड के लिए नहीं। अगर कुर्सी सिर में घुस गई, तो न्याय का मोल खत्म हो जाएगा।” उनका यह वक्तव्य न्यायपालिका के भीतर गहराई से घर कर गए औपचारिकता और अकड़ के चलन की तरफ इशारा करता है।

उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों और वकीलों के आपसी रिश्ते सहयोग और सम्मान पर आधारित होने चाहिए। न्यायालय केवल न्यायाधीश का मंच नहीं होता, बल्कि वकीलों और न्यायाधीशों दोनों की सहभागिता से इसकी गरिमा बनती है।

वकीलों को वरिष्ठों के प्रति आदर का दिया संदेश

अपने संबोधन में CJI गवई ने वकीलों के आचरण की ओर भी ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा, “आज 25 साल का वकील कुर्सी पर बैठा होता है और जब 70 साल का वरिष्ठ वकील आता है, तो वह उठता भी नहीं। थोड़ी तो शर्म करो!” यह बात उन्होंने इस संकेत के रूप में कही कि अनुभव और वरिष्ठता का सम्मान करना भारतीय न्याय परंपरा का हिस्सा है, जिसे भूलना खतरनाक हो सकता है।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वकील और न्यायाधीश दोनों को ही एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए। यह संबंध औपचारिक नहीं बल्कि एक दूसरे की गरिमा को पहचानने और समझने पर आधारित होना चाहिए।

सेवा का माध्यम मानने की सलाह

मुख्य न्यायाधीश ने अपने भाषण का मूल संदेश यही बताया कि किसी भी पद पर बैठे व्यक्ति को अहंकार नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा, “अगर पद या कुर्सी पर बैठने से हमें ऐसा लगने लगे कि हम किसी से बड़े हो गए हैं, तो वह पद का अपमान है।”

उन्होंने न्यायाधीशों और वकीलों दोनों से आग्रह किया कि वे अपने पद को सेवा का माध्यम मानें, और समाज की अपेक्षाओं को समझें। उन्होंने कहा कि इस प्रणाली में यदि कोई भी व्यक्ति अपने अधिकारों को विशेषाधिकार समझने लगे, तो न्याय की आत्मा ही मर जाती है।

CJI भूषण गवई का यह संबोधन एक चेतावनी से कम नहीं है, न केवल न्यायपालिका के लिए, बल्कि समाज के हर उस वर्ग के लिए जो सत्ता और पद को सम्मान का पर्याय समझता है। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि न्यायिक प्रणाली तभी तक सशक्त है जब तक उसमें सेवा का भाव जीवित है। घमंड, अहंकार और औपचारिकता अगर इस सिस्टम पर हावी हो जाएं, तो यह आम नागरिक की आशाओं का अंत हो सकता है।