दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के महि-मांडवी हॉस्टल में छात्रों के बीच भोजन को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। छात्रसंघ (JNUSU) का आरोप है कि हॉस्टल अध्यक्ष, जो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़े हैं, ने हॉस्टल के मेस में शाकाहारी और मांसाहारी छात्रों के लिए अलग-अलग बैठने की व्यवस्था लागू कर दी है। इस फैसले के बाद कैंपस में बहस और विरोध शुरू हो गया है। छात्रसंघ का कहना है कि यह व्यवस्था “विभाजनकारी और खतरनाक” है तथा यह जेएनयू की समावेशी परंपरा पर हमला है।
छात्रसंघ का विरोध और प्रशासन से शिकायत
इस विवाद ने 30 जुलाई को जोर पकड़ा, जब छात्रसंघ ने “नो सेग्रेगेशन इन आवर हॉस्टल्स” शीर्षक से एक आधिकारिक बयान जारी किया। बयान में कहा गया कि यह कदम हॉस्टल नियमों के खिलाफ है और छात्र समुदाय की एकता को तोड़ने की एक सोची-समझी कोशिश है। JNUSU ने इस व्यवस्था के खिलाफ हॉस्टल के बाहर विरोध प्रदर्शन भी किया और इसे ABVP की “घृणा और भेदभाव की राजनीति” बताया।
छात्रसंघ ने जेएनयू प्रशासन से तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है और कहा है कि अगर इस पर कार्रवाई नहीं हुई तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा। छात्रसंघ ने कहा कि जेएनयू में पहली बार भोजन के आधार पर छात्रों को बाँटने की कोशिश की जा रही है, जो विश्वविद्यालय की मूल पहचान के विपरीत है।
वॉर्डन का जवाब और जांच समिति का गठन
जब छात्रसंघ ने यह मामला हॉस्टल प्रशासन के सामने रखा तो वरिष्ठ वॉर्डन ने खुद को इस फैसले से अनभिज्ञ बताया। वॉर्डन ने आश्वासन दिया कि एक जांच समिति गठित की जाएगी, जो यह पता लगाएगी कि क्या हॉस्टल अध्यक्ष, मैस सचिवों और मैस प्रबंधकों ने मिलकर इस व्यवस्था को लागू करने की कोशिश की।
छात्रसंघ का कहना है कि यह सिर्फ एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि जेएनयू के समावेशी और बहुलतावादी वातावरण पर सीधा हमला है। इस घटना से यह सवाल उठता है कि क्या अब विश्वविद्यालय में विचारों के साथ-साथ भोजन की आज़ादी पर भी अंकुश लगाने की कोशिश की जा रही है।
जेएनयू की परंपरा और छात्रसंघ की चेतावनी
जेएनयू छात्रसंघ ने इस पूरी घटना को विश्वविद्यालय की ऐतिहासिक परंपरा के विरुद्ध बताया है। छात्रसंघ के अनुसार, जेएनयू हमेशा से विविधता और लोकतांत्रिक सह-अस्तित्व का प्रतीक रहा है। यहां किसी भी तरह की ‘फूड पुलिसिंग’ या खाने की स्वतंत्रता पर नियंत्रण का इतिहास नहीं रहा।
छात्रसंघ ने यह भी चेतावनी दी है कि वह किसी भी सांप्रदायिक या भेदभावपूर्ण पहल के खिलाफ सख्ती से खड़ा रहेगा। उन्होंने कहा कि भोजन, संस्कृति और पहचान के बीच एक सीधा संबंध होता है, और अगर इस स्वतंत्रता पर हमला होता है, तो यह संवैधानिक मूल्यों की अनदेखी मानी जाएगी।





