क्या आपने कभी सोचा है कि दिल्ली से मुंबई (Delhi-Mumbai) जाने वाली ट्रेनों को और तेज़ कैसे किया जा सकता है? रेलवे अब उसी दिशा में काम कर रहा है। ये सिर्फ ट्रैक बदलने या मरम्मत करने की बात नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम को नया रूप देने की तैयारी है।
मध्य प्रदेश के रतलाम रेल मंडल ने दिल्ली-मुंबई रूट पर एक बड़ा कदम बढ़ाते हुए अब 66 किलोमीटर की जगह 135 किलोमीटर तक एबीएस सिग्नलिंग सिस्टम शुरू कर दिया है। ये सिर्फ तकनीकी काम नहीं, बल्कि यात्रियों के लिए सुविधा, सुरक्षा और समय की बचत की नई उम्मीद है।
एबीएस सिग्नलिंग क्या होता है और क्यों ज़रूरी है
रेलवे में सिग्नलिंग का मतलब सिर्फ लाल-हरा लाइट नहीं होता। ये सिस्टम तय करता है कि ट्रैक पर कितनी ट्रेनें चल सकती हैं, कौन सी ट्रेन आगे जाएगी और कौन रुकेगी। पुराने सिस्टम में सब कुछ मैन्युअल होता था, यानी इंसान पर ज़्यादा निर्भरता। लेकिन अब एबीएस सिग्नलिंग लगने से ये काम अपने-आप होगा।
इस सिस्टम में ट्रैक के अलग-अलग हिस्से (ब्लॉक) अपने-आप खुलते और बंद होते हैं। इससे मानवीय गलती की संभावना बहुत कम हो जाती है। यानी अब ट्रेनें ज़्यादा सुरक्षित होंगी, ट्रैक खाली होने का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा और सफर भी समय पर पूरा होगा। रतलाम मंडल में पहले सिर्फ 66 किलोमीटर ट्रैक पर ये सुविधा थी, अब ये बढ़कर 135 किलोमीटर हो गई है। इससे पूरे रूट पर ट्रेनों की आवाजाही और भी स्मूद हो जाएगी।
कैसे हुआ 135 किलोमीटर का ये काम पूरा
रतलाम मंडल ने 30 अक्टूबर को बड़ा कदम उठाते हुए ‘ई’ केबिन से बजरंगगढ़ के बीच करीब 68.7 किलोमीटर ट्रैक पर एक साथ एबीएस सिस्टम शुरू किया। इससे पहले नागदा जंक्शन के पास 38 किलोमीटर और कांसुधी से पिपलोद सेक्शन के 28 किलोमीटर ट्रैक पर ये सिस्टम लगाया जा चुका था।
इस तरह अब मंडल में कुल 135 किलोमीटर का हिस्सा एबीएस सिग्नलिंग के तहत आ गया है। ये अब तक का सबसे बड़ा एबीएस सेक्शन है, जिसे भारतीय रेल के इतिहास में पहली बार एक साथ कमीशन किया गया है।
ये काम रेलवे के मिशन रफ्तार का हिस्सा है, जिसमें दिल्ली-मुंबई मार्ग पर ट्रेनों की गति 160 किलोमीटर प्रति घंटा तक बढ़ाने की योजना है। इसके लिए रेलवे ट्रैक की मरम्मत, ओएचई की देखरेख, कर्व ठीक करना, एच-बीम स्लीपर लगाना और कवच 4.0 जैसी नई सुरक्षा तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है।
यात्रियों को इससे क्या फायदा होगा
1. समय की बचत
जब ट्रैक और सिग्नलिंग सिस्टम आधुनिक हो जाएंगे, तो ट्रेनें ज़्यादा तेज़ चल सकेंगी। दिल्ली-मुंबई रूट पर अब तक ट्रेनों की औसत गति 100 से 130 किलोमीटर प्रति घंटा थी। अब इसे बढ़ाकर 160 किलोमीटर प्रति घंटा करने की दिशा में काम चल रहा है। इससे यात्रा का समय कई घंटे कम हो जाएगा।
2. ज़्यादा भरोसेमंद सेवा
नए सिस्टम में ट्रेनों के बीच का अंतर अपने-आप तय होता है, इसलिए इंसानी गलती की गुंजाइश बहुत कम हो जाती है। इससे ट्रेनें समय पर चलेंगी और हादसों का खतरा घटेगा। रतलाम मंडल में 70 से ज़्यादा स्टेशन अब इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम से जुड़े हैं, जिससे सिग्नलिंग और भी मज़बूत हो गई है।
3. भविष्य के लिए तैयारी
रेलवे का लक्ष्य सिर्फ 160 किलोमीटर तक रफ्तार बढ़ाना नहीं है, बल्कि भविष्य में और तेज़ ट्रेनें चलाने की तैयारी करना है। जब ट्रैक और सिग्नलिंग दोनों मजबूत होंगे, तो हाई-स्पीड ट्रेनें आसानी से चल सकेंगी। यात्रियों को कम समय में सफर और ज़्यादा आराम मिलेगा।
क्यों ज़रूरी है दिल्ली-मुंबई मार्ग पर ये बदलाव
दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग देश के सबसे व्यस्त रूट्स में से एक है। हर दिन यहां से हजारों यात्री और सैकड़ों मालगाड़ियाँ गुजरती हैं। ऐसे में अगर ट्रेनों की रफ्तार और संचालन बेहतर हो जाए, तो इसका असर पूरे नेटवर्क पर पड़ेगा।
रेल मंत्रालय का कहना है कि इस रूट पर 160 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार लाने से न सिर्फ यात्रियों का समय बचेगा बल्कि मालगाड़ियों की डिलीवरी भी तेज़ होगी। इससे व्यापार, उद्योग और अर्थव्यवस्था सभी को फायदा होगा।
आगे की राह और चुनौतियाँ
अभी दिल्ली-मुंबई रूट के कुछ हिस्सों में ही एबीएस सिग्नलिंग सिस्टम लगाया गया है। बाकी सेक्शन में काम जारी है। ट्रैक को दुरुस्त करना, पुराने ब्रिजों को मजबूत करना और नई तकनीक लागू करना अब भी बड़ी चुनौती है।
आगे रेलवे को इन सुधारों को पूरे मार्ग पर लागू करना होगा ताकि रफ्तार 160 किलोमीटर प्रति घंटा तक आसानी से पहुंच सके। साथ ही कवच जैसी सुरक्षा तकनीकें भी हर सेक्शन में लगनी होंगी, ताकि कोई दुर्घटना न हो।
आम यात्रियों के लिए इसका मतलब क्या है
अगर आप दिल्ली, मुंबई, इंदौर, नागदा या रतलाम से ट्रेन में सफर करते हैं, तो ये खबर सीधे आपके लिए है। आने वाले समय में आपकी यात्रा तेज़, सुरक्षित और समय पर होगी। ट्रेनों के लेट होने की समस्या कम होगी और आराम का स्तर भी बढ़ेगा। रेलवे अब सिर्फ नई ट्रेनें लाने पर नहीं, बल्कि पुराने रूट्स को आधुनिक बनाने पर ज़्यादा ध्यान दे रहा है। यही वजह है कि आने वाले कुछ सालों में भारत का रेलवे नेटवर्क पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ और भरोसेमंद दिखेगा।





