Delhi University : दिल्ली विश्वविद्यालय में मनुस्मृति पढ़ाने को लेकर खड़ा हुआ विवाद, शिक्षक और छात्रों की मांग पर VC ने लिया यह फैसला, पढ़ें यह खबर

Delhi University : दिल्ली विश्वविद्यालय की लॉ फैकल्टी ने अपने प्रथम और तृतीय वर्ष के सिलेबस में 'मनुस्मृति' के एक भाग को पढ़ाने का प्रस्ताव रखा था। जिस प्रस्ताव को अब खारिज कर दिया गया है।

Rishabh Namdev
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Delhi University : दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) में लॉ के सिलेबस में ‘मनुस्मृति’ को शामिल करने को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। दरअसल विश्वविद्यालय की लॉ फैकल्टी ने अपने प्रथम और तृतीय वर्ष के सिलेबस में ‘मनुस्मृति’ के एक भाग को पढ़ाने का प्रस्ताव रखा था। वहीं इस प्रस्ताव पर 12 जुलाई को एकेडेमिक कमेटी की बैठक में चर्चा की जानी थी, लेकिन शिक्षकों और छात्रों की कड़ी आपत्ति के बाद यह प्रस्ताव खारिज कर दिया गया है।

सिलेबस में बदलाव पर हंगामा

दरअसल लॉ फैकल्टी द्वारा प्रस्तावित इस बदलाव ने विश्वविद्यालय में हंगामा मचा दिया। इस प्रस्ताव को लेकर 12 जुलाई को होने वाली अकादमिक काउंसिल की बैठक में विचार होना था, लेकिन इससे पहले ही शिक्षकों और छात्रों ने इस पर नाराजगी जाहिर की।

शिक्षकों और छात्रों की नाराजगी

जैसे ही ‘मनुस्मृति’ को सिलेबस में शामिल करने की खबर सामने आई, विश्वविद्यालय के कई शिक्षक और छात्र विरोध में खड़े हो गए। शिक्षकों ने कुलपति योगेश सिंह को पत्र लिखकर अपनी आपत्तियों को व्यक्त किया।

शिक्षकों का विरोध

वहीं शिक्षकों ने कुलपति को लिखे पत्र में कहा, “हमें पता चला है कि लॉ कोर्सेस में ‘मनुस्मृति’ पढ़ाने की सिफारिश की गई है। यह बेहद आपत्तिजनक है, क्योंकि इसमें लिखी बातें भारत में महिलाओं और पिछड़े वर्गों की शिक्षा और प्रगति के खिलाफ हैं। देश की आधी आबादी महिलाओं की है, और उनकी प्रगति एक प्रगतिशील शिक्षा व्यवस्था पर निर्भर करती है, न कि प्रतिगामी शिक्षण पर। ‘मनुस्मृति’ के कई भागों में महिलाओं की शिक्षा और समान अधिकार का विरोध किया गया है, जो हमारे संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है।”

एससी, एसटी, ओबीसी और ट्रांसजेंडर समुदायों के अधिकारों पर असर

जानकारी के अनुसार शिक्षकों ने आगे लिखा कि ‘मनुस्मृति’ को शामिल करना एससी, एसटी, ओबीसी और ट्रांसजेंडर समुदायों के अधिकारों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। यह मानवीय प्रतिष्ठा और मानव मूल्यों के खिलाफ है। इसलिए, ‘हम सिलेबस में Jurisprudence का पेपर शामिल करने और इस बदलाव पर कड़ी आपत्ति करते हैं। इसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए और बैठक में इसे मंजूरी नहीं मिलनी चाहिए।’

प्रस्ताव खारिज

शिक्षकों की संस्था (एसडीटीएफ) के द्वारा लिखे गए इस पत्र के चलते विश्वविद्यालय में ‘मनुस्मृति’ पढ़ाए जाने के प्रस्ताव को खारिज किया गया है। इसके साथ ही अब यह प्रस्ताव 12 जुलाई को होने वाली डीयू की अकादमिक काउंसिल की बैठक में नहीं लाया जाएगा।


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मैंने श्री वैष्णव विद्यापीठ विश्वविद्यालय इंदौर से जनसंचार एवं पत्रकारिता में स्नातक की पढ़ाई पूरी की है। मैं पत्रकारिता में आने वाले समय में अच्छे प्रदर्शन और कार्य अनुभव की आशा कर रहा हूं। मैंने अपने जीवन में काम करते हुए देश के निचले स्तर को गहराई से जाना है। जिसके चलते मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार बनने की इच्छा रखता हूं।

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