आज संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद भवन पहुंचकर डॉ. अंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सुबह संसद पहुंचे और डॉ अंबेडकर के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। आज देशभर लोग बाबा साहब के सामाजिक न्याय, समानता और वंचित वर्गों के उत्थान में उनके योगदान को याद कर रहे हैं और उन्हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित कर रहे हैं।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी बाबा साहब का स्मरण किया है। उन्होंने एक्स पर लिखा कि “संविधान निर्माता, भारत रत्न, बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी के महापरिनिर्वाण दिवस पर सादर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन कमजोर व वंचित वर्ग के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। संविधान, लोकतंत्र और विकास के संकल्प को सुदृढ़ करने के लिए जो प्रयास किए, वे सदैव प्रेरणा देते रहेंगे।”
डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों ने समाज को दी नई दिशा
डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था। उन्होंने अस्पृश्यता उन्मूलन, शिक्षा के विस्तार, सामाजिक समानता और राज्य द्वारा वंचित वर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने मौलिक अधिकारों, समान अवसर और सामाजिक न्याय को संविधान की केंद्रीय धुरी बनाने पर जोर दिया। भारत का संवैधानिक ढांचा उनके बौद्धिक नेतृत्व और दूरदर्शिता का ही परिणाम है। डॉ. अंबेडकर को भारतीय संविधान सभा की प्रारूप समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। उन्होंने संविधान को लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, सामाजिक न्याय पर आधारित और समानता केंद्रित बनाने में निर्णायक भूमिका निभाई। संविधान में मौलिक अधिकारों, समानता, स्वतंत्रता तथा सामाजिक रूपांतरण संबंधी प्रावधानों का स्वरूप काफी हद तक उनके विचारों से प्रेरित था।
महापरिनिर्माण दिवस के रूप में मनाई जाती है डॉ. अंबेडकर की पुण्यतिथि
डॉ. आंबेडकर का निधन 6 दिसम्बर 1956 को हुआ था। उनकी पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है। बाबा साहब ने जीवन के अंतिम चरण में बौद्ध धर्म ग्रहण किया और बौद्ध सिद्धांतों को अपनाया था। उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार किया और बौद्ध सिद्धांतों को अपने सामाजिक दर्शन का हिस्सा बनाया। इसीलिए उनकी पुण्यतिथि को ‘महापरिनिर्वाण दिवस’ कहा जाता है। बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण वह अंतिम आध्यात्मिक अवस्था कही जाती है जिसमें व्यक्ति जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। वे करुणा, समानता, वैज्ञानिक दृष्टि और मानव गरिमा पर आधारित बौद्ध चिंतन को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम मानते थे। आज देश भर में उनकी पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।





