रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने स्वदेशी फाइटर जेट एस्केप सिस्टम का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया है। इसकी सहायता से अब पायलट फाइटर जेट उड़ाते समय किसी भी प्रकार का खतरा होने पर अपना बचाव कर सकते हैं। यह परीक्षण एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA) और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के सहयोग से किया गया।
रक्षा मंत्रालय ने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट कर बताया कि DRDO ने चंडीगढ़ स्थित टर्मिनल बैलिस्टिक्स रिसर्च लेबोरेटरी की रेल ट्रैक रॉकेट स्लेड (RTRS) फैसिलिटी में एयरक्राफ्ट एस्केप सिस्टम को 800 किमी/घंटा की नियंत्रित गति पर टेस्ट किया। इस टेस्ट का उद्देश्य कैनोपी हटने की प्रक्रिया, इजेक्शन सीक्वेंस, और एयरक्रू रिकवरी की क्षमता को मान्य करना था। DRDO ने बताया कि भारत एस्केप सिस्टम परीक्षण क्षमता वाले देशों के विशिष्ट क्लब में शामिल हो गया है। यह डीआरडीओ के साथ-साथ भारत के लिए बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।
DRDO has successfully conducted a high-speed rocket-sled dynamic ejection test at TBRL Chandigarh, validating canopy severance, ejection sequencing and complete aircrew recovery using an instrumented dummy. The complex test, carried out with ADA and @HALHQBLR using a dual-sled… pic.twitter.com/iYUr4Papzc
— Ministry of Defence, Government of India (@SpokespersonMoD) December 2, 2025
एस्केप सिस्टम कैसे करता है काम?
बता दें कि एयरक्राफ्ट एस्केप सिस्टम किसी भी फाइटर जेट का सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा उपकरण होता है। जो आपातकाल या विमान के नियंत्रण खोने की स्थिति में पायलट इसी सिस्टम के सहारे कुछ सेकंड में कॉकपिट से बाहर निकलता है। पायलट आसमान की कितनी भी ऊंचाई पर क्यों न हो वो इस उपकरण की मदद से अपनी जांच बचा सकता है।
इसका यूज करना भी आसान होता है। पहले कैनोपी अपने-आप टूट या हट जाती है, फिर पायलट की सीट रॉकेट मोटर की मदद से ऊंचाई पर पहुंचती है। वहां से पैराशूट खुलता है और पायलट सुरक्षित तरीके से जमीन तक पहुंच जाता है। आधुनिक सिस्टम में ऑक्सीजन सपोर्ट, स्वचालित पैराशूट तंत्र और समुद्र या रात में बचाव के अतिरिक्त उपकरण भी शामिल होते हैं।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दी बधाई
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस सफल परीक्षण पर डीआरडीओ, भारतीय वायुसेना, एडीए, एचएएल और रक्षा उद्योग जगत को बधाई दी। उन्होंने इसे आत्मनिर्भरता की दिशा में स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी को सशक्त बनाने वाला एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर करार दिया।





