मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल बैठक में हिमाचल प्रदेश सरकार ने नशे के खिलाफ चल रही कार्रवाई की समीक्षा की। इस दौरान पुलिस, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता और स्वास्थ्य विभागों ने विस्तार से अपनी प्रस्तुतियां दीं। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार नशे के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति पर काम कर रही है। उन्होंने नशे के नेटवर्क को तोड़ने के लिए विभिन्न विभागों के बीच समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता बताई।
हिमाचल सरकार का बड़ा कदम
बैठक में फैसला लिया गया कि अब राज्य में पुलिस भर्ती के दौरान चिट्टा (सिंथेटिक ड्रग) का डोप टेस्ट अनिवार्य होगा। साथ ही, सभी नए सरकारी कर्मचारियों को यह शपथ पत्र देना होगा कि वे चिट्टा का सेवन नहीं करते। मुख्यमंत्री ने यह भी निर्देश दिए कि यदि कोई कर्मचारी नशे से जुड़े मामलों में संलिप्त पाया गया, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। जानकारी दी गई कि प्रदेश में एनडीपीएस एक्ट के तहत दर्ज मामले कुल मामलों का 9 प्रतिशत हैं, जो पंजाब के 20 प्रतिशत की तुलना में काफी कम हैं।
42.22 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त
राज्य सरकार ने बताया कि मौजूदा कार्यकाल में अब तक 45 नशा संबंधी मामले दर्ज किए गए हैं। इसके तहत 42.22 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की गई है, जो कि पिछले वर्षों की तुलना में दोगुनी से अधिक है। साथ ही, पीआईटी-एनडीपीएस एक्ट के तहत 44 लोगों को हिरासत में लिया गया है। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि सरकार नशे के खिलाफ ठोस कार्रवाई कर रही है।
स्वास्थ्य विभाग को पुनर्वास, परामर्श, इलाज और जनजागरूकता की गतिविधियों को और मजबूत करने के निर्देश दिए गए हैं। वर्तमान में कुल्लू, हमीरपुर, नूरपुर और ऊना में पुनर्वास केंद्र संचालित हो रहे हैं। अब सभी जिला मुख्यालयों में ऐसे केंद्र स्थापित किए जाएंगे। इसके लिए 14.95 करोड़ रुपये की परियोजना शुरू की जा रही है। मुख्यमंत्री ने महिला मंडलों, युवक मंडलों, पंचायतों, नागरिक समाज और शिक्षा विभाग को इस मुहिम में सक्रिय रूप से जोड़ने को कहा है।





