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Wed, Dec 17, 2025

‘संवैधानिक वैधता का मतलब यह नहीं कि…’, पूर्व मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने संसदीय समिति से क्या कहा

Written by:Mini Pandey
Published:
संजीव खन्ना ने आगे कहा कि चुनाव आयोग द्वारा चुनाव स्थगित करने से अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है, जिसका अर्थ है केंद्र सरकार की ओर से राज्य सरकार की बागडोर संभालना।
‘संवैधानिक वैधता का मतलब यह नहीं कि…’, पूर्व मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने संसदीय समिति से क्या कहा

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने एक साथ चुनाव कराने वाले विधेयक की जांच कर रही संसदीय समिति को बताया है कि किसी प्रस्ताव की संवैधानिक वैधता का मतलब उसकी वांछनीयता या आवश्यकता का समर्थन नहीं है। उन्होंने अपने लिखित विचार में कहा कि इस विधेयक से देश की संघीय संरचना को कमजोर करने के तर्क उठाए जा सकते हैं। खन्ना मंगलवार को समिति के साथ चर्चा करने वाले हैं और उन्होंने चुनाव आयोग को दी गई शक्तियों की व्यापकता पर चिंता जताई है।

खन्ना ने कहा कि विधेयक में चुनाव आयोग को यह तय करने की अनियंत्रित स्वतंत्रता दी गई है कि विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ नहीं कराए जा सकते और इस संबंध में राष्ट्रपति को सिफारिश करने का अधिकार दिया गया है। सूत्रों के अनुसार, उन्होंने चेतावनी दी कि यह प्रावधान संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करने और अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता का उल्लंघन करने के आधार पर सवालों के घेरे में आ सकता है।

राज्य सरकार की बागडोर संभालना

संजीव खन्ना ने आगे कहा कि चुनाव आयोग द्वारा चुनाव स्थगित करने से अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है, जिसका अर्थ है केंद्र सरकार की ओर से राज्य सरकार की बागडोर संभालना। यह संविधान में परिकल्पित संघीय ढांचे का उल्लंघन हो सकता है और इसे न्यायिक रूप से चुनौती दी जा सकती है। खन्ना ने यह भी स्पष्ट किया कि 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ चुनाव होना एक संयोग था, न कि संविधान का कोई स्पष्ट या निहित आदेश।

मेरिट रिव्यू और न्यायिक रिव्यू के बीच अंतर

खन्ना ने मेरिट रिव्यू और न्यायिक रिव्यू के बीच अंतर को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालय किसी कानून की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हैं, तो यह केवल विधायी शक्ति की पुष्टि करता है, न कि उसकी वांछनीयता का। इससे पहले, पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जे एस खेहर, यू यू ललित और रंजन गोगोई भी समिति के साथ इस एक देश एक चुनाव विधेयक के विभिन्न प्रावधानों पर चर्चा कर चुके हैं।