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Wed, Dec 17, 2025

आख़िर क्यों गाय की वेशभूषा धारण कर नेपाल की सड़कों पर निकले लोग, क्या हैं इसके पीछे की मान्यता

Written by:Rishabh Namdev
Published:
नेपाल के काठमांडू में रविवार को गाय यात्रा धूमधाम से मनाई गई। इस दौरान लोग तरह-तरह की कॉस्ट्यूम पहनकर इसमें शामिल हुए और अपने परिजनों को श्रद्धांजलि दी। चलिए जानते हैं, आखिर गाय यात्रा का इतिहास क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है।
आख़िर क्यों गाय की वेशभूषा धारण कर नेपाल की सड़कों पर निकले लोग, क्या हैं इसके पीछे की मान्यता

रविवार, 10 अगस्त को नेपाल के काठमांडू में गाय यात्रा धूमधाम से मनाई गई। बड़ी संख्या में लोग इस यात्रा में शामिल हुए। इस दौरान बच्चों ने पारंपरिक कॉस्ट्यूम पहनी और यात्रा में हिस्सा लिया। दरअसल, यह त्योहार 17वीं सदी से मनाया जाता रहा है। इस यात्रा के जरिए मृत परिजनों को सम्मान और श्रद्धांजलि दी जाती है। 255 साल पुरानी इस पारंपरिक यात्रा को आज भी धूमधाम से मनाया जाता है।

इस यात्रा के दौरान काठमांडू घाटी में संगीत और नृत्य के साथ लोग पारंपरिक कॉस्ट्यूम में शामिल होते हैं। बीते साल जिनके परिजनों की मृत्यु हुई होती है, वे लोग इस यात्रा में उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचते हैं। चलिए जानते हैं, यह यात्रा क्यों मनाई जाती है और इसकी शुरुआत कैसे हुई।

जानिए क्या है इस यात्रा का इतिहास?

इस यात्रा का इतिहास बेहद पुराना है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि स्वर्ग जाते हुए मृतकों को एक नदी पार करनी होती है और वे गाय की पूंछ पकड़कर नदी पार करते हैं। मल्ला राजवंश के राजा प्रताप मल्ल ने अपनी रानी को सांत्वना देने के लिए इस त्योहार की शुरुआत की थी। रानी, जो अपने पुत्र की मौत से शोकाकुल थीं, को राजा यह दिखाना चाहते थे कि वह परिजन को खोने वाली अकेली नहीं हैं, बल्कि उनके जैसे अनेक लोग हैं। पुत्र की मौत के बाद उनकी पत्नी बेहद दुखी थीं। राजा ने उन्हें प्रसन्न करने के लिए कई प्रयास किए लेकिन वह खुश नहीं हुईं।

ऐसे हुई यात्रा की शुरुआत

दरअसल जब राजा ने यह आदेश दिया कि जो रानी को हंसाएगा, उसे पुरस्कृत किया जाएगा, इसके बाद ही गाय की यात्रा निकाली गई जिसमें शामिल लोगों ने तरह-तरह के गीत गाए, और अलग अलग वेशभूषा में शामिल हुए, जिससे रानी के चेहरे पर मुस्कान आई। इसके बाद रानी को यह समझ आया कि मौत एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और इस प्रक्रिया पर किसी का भी बस नहीं चलता। इसके बाद से ही गाय यात्रा की शुरुआत हुई। काठमांडू में इसे धूमधाम से मनाया जाता है। यह यात्रा 255 साल पुरानी है। इस दौरान वे लोग शामिल होते हैं, जिनके परिजन बीते साल इस दुनिया को छोड़कर चले गए। वे लोग यात्रा में गाय को लेकर हिस्सा लेते हैं। अगर उनके पास गाय नहीं होती है तो किसी बच्चे को भी गाय की तरह सजाया जाता है। इस यात्रा में लोग तरह-तरह के कपड़े पहनकर शामिल होते हैं।