हाई फ्लाइंग डूडल समर्पित कर गूगल ने दी सरला ठाकुर को श्रद्धांजलि।

Gaurav Sharma
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देश, डेस्क रिपोर्ट। “जिम्मेदारी संग नारी भर रही है उड़ान, ना कोई शिकायत ना कोई थकान”, जब भी हम इस तरह की पंक्तियों को पढ़ते हैं तो ऐसा लगता है मानो किसी मनुष्य की नहीं बल्कि दूसरी दुनियां के किसी चरित्र का वर्णन कर रहे हों। सुबह आंख खुलने से लेकर रात में सोने तक अगर कोई घड़ी की सुई से ताल मिला कर चलती है वो है नारी। बिना किसी शिकायत, बिना किसी थकान के निरंतर अपनी जिम्मेदारियों को वहन कर पूरा करते हुए दुनियां का सृजन जो करती है वो है नारी।

हाई फ्लाइंग डूडल समर्पित कर गूगल ने दी सरला ठाकुर को श्रद्धांजलि।

इतिहास के पन्नों को भी जब पलटकर देखा जाता है तो उसमें हमें कभी घोषा का नाम देखने को मिलता है तो कभी लक्ष्मीबाई का, कभी समाज की बेड़ियों को तोड़ती रामाबाई का नाम देखने को मिलता है तो कभी पुरुषप्रधान समाज में इतिहास बदलती सरला ठाकुर का जिनको आज के दिन गूगल ने अपना डूडल समर्पित किया हैं।

कौन थीं सरला ठाकुर?

आपको बता दें सरला का जन्म 8 अगस्त 1914 को दिल्ली में हुआ था, बाद में वे लाहौर (अब पाकिस्तान) चली गईं थी। मात्र 16 साल की उम्र में सरला की शादी एयर मेल पायलट पी डी शर्मा से हुई। शर्मा का पूरा परिवार ही पायलट था जिस वजह से सरला को भी विमान उड़ाने का प्रशिक्षण लेने का मौका मिला। उन्हें फ्लाइंग क्लब में भर्ती कराने में सबसे बड़ा सहयोग उनके ससुर का था। वे चाहते थे की सरला पायलट बनें। मात्र 21 साल की उम्र में 4 साल की बेटी की मां सरला ने साड़ी पहनकर अकेले एयरक्राफ्ट उड़ा इतिहास के पन्नों में अपना नाम पहली भारतीय महिला पायलट के रूप में दर्ज किया।

लाहौर फ्लाइंग क्लब में प्रशिक्षण ले सरला ने अपना ग्रुप ‘A’ लाइसेंस 1936 में प्राप्त किया जो कि उनसे पहले किसी भारतीय के पास नहीं था। सन् 1939 में 24 साल की सरला जोधपुर में जब कमर्शियल पायलट लाईसेंस के लिए प्रशिक्षण ले रही थीं तब उनके पति की विमान हादसे में मृत्यु हो गई। कुछ समय बाद जब सरला ने कमर्शियल लाइसेंस की ट्रेनिंग के लिए फिर आवेदन दिया तब द्वतीय विश्व युद्ध के होने की वजह से सभी प्रकार की ट्रेनिंग को रोक दिया गया। इसके बाद सरला ने लाहौर में “फाइन आर्ट और पेंटिंग” की पढ़ाई पूरी की।

1947 में हुए बटवारे के बाद सरला वापस दिल्ली आ गईं और गहने एवं कपड़ों की डिजाइनिंग में अपने कैरियर की शुरुआत की। उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के लिए कपड़े और गहने डिजाइन किए। 1948 में सरला ने आर.पी ठकराल के साथ विवाह किया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नही देखा और एक मशहूर बिज़नेस वूमेन के तौर पर डिजाइनिंग इंडस्ट्री में नाम कमाया। मशहूर पॉलिटीशियन विजय लक्ष्मी पंडित इनकी ग्राहक थीं। सरला ने अपनी आखरी सांस 2008 में ली। इनकी इन्हीं उपलब्धियों के लिए सरला को गूगल ने अपना डूडल समर्पित कर नमन किया है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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