प्रयागराज, डेस्क रिपोर्ट। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बार फिर अहम निर्णय सुनाया है। हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस में नियुक्त सिपाही की पूर्व सैनिक के रूप में की गई सेवा जोड़कर वेतन का निर्धारण करने के निर्देश दिए है। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने आरक्षी विकास कुमार मिश्र की याचिका पर दिया है।
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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग में तैनात आरक्षी को उसके द्वारा भारतीय सेना में दी गई सेवाओं को जोड़ते हुए उसका वेतन निर्धारित करने का निर्देश विभाग सक्षम अधिकारी को दिया है। हाई कोर्ट ने अधिकारियों को निर्देश दिया है वह उत्तर प्रदेश पुलिस रेगुलेशन एवं सिविल सर्विस रेगुलेशन के प्रावधानों पर विचार कर याची आरक्षी के मामले में आदेश पारित करें।
दरअसल, याची आरक्षी विकास कुमार मिश्रा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी। याची विकास कुमार मिश्र उत्तर प्रदेश के पुलिस विभाग में आरक्षी के पद पर 5 जून 2021 को नियुक्त हुआ। उसकी नियुक्ति भूतपूर्व सैनिक कोटे के अंतर्गत की गई,इसके बाद वह भारतीय सेना में वर्ष 2001 से 2017 तक सेवा करने के बाद रिटायर हो गया और यूपी पुलिस विभाग में आरक्षी के पद पर नियुक्त हुआ। लेकिन उसे भारतीय सेना में की गई सेवा अवधि को वर्तमान में नहीं जोड़ा जा रहा है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस संबंध में आरक्षी के वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं अतिप्रिया गौतम का कहना था कि उत्तर प्रदेश पुलिस रेगुलेशन के पैरा 410 तथा सिविल सर्विस रेगुलेशन के प्रस्तर 422 व 526 में यह स्पष्ट प्रावधान है कि भूतपूर्व सैनिकों द्वारा दी गई सेवाओं की अवधि को वर्तमान सेवा में जोड़ा जाएगा तथा उनका वेतन सेना से रिटायर होने की तिथि को आहरित अंतिम मूल वेतन के आधार पर निर्धारित किया जाएगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अधिवक्ताओं का तर्क था कि शासनादेश दिनांक 26 अगस्त 1977, 26 मार्च 1980, 22 मार्च 1991, 7 नवंबर 2014, 21 जनवरी 2016 एवं 17 जून 2021 में यह व्यवस्था दी गई है कि भूतपूर्व सैनिकों की पूर्व सेवाओं को यूपी पुलिस रेगुलेशन के पैरा 410 तथा सिविल सर्विस रेगुलेशन के प्रस्तर 422 एवं 526 के अंतर्गत जोड़ा जाएगा। कहा गया था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हंसनाथ द्विवेदी एवं हरिश्चंद्र के केस में भूतपूर्व सैनिकों की सेवाएं जोड़े जाने की व्यवस्था प्रतिपादित कर रखा है।