असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि बंगाली हिंदू समुदाय के लोग, जो 1971 से पहले असम आए थे, उन्हें नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत नागरिकता के लिए आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि ये लोग बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान असम आए और असम समझौते के अनुसार, वे भारतीय नागरिक हैं। सरमा ने बताया कि केवल 12 लोग ऐसे थे जो भारतीय नागरिक नहीं थे, जिनमें से तीन को CAA के तहत नागरिकता मिल चुकी है और नौ आवेदन विचाराधीन हैं।
कई राजनीतिक दलों और संगठनों ने असम में CAA के खिलाफ प्रदर्शन शुरू किए हैं। सरमा ने इन प्रदर्शनों पर आश्चर्य जताते हुए कहा कि केवल 12 लोगों के लिए विरोध क्यों किया जा रहा है। दूसरी ओर, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने CAA के तहत भारत में प्रवेश की अंतिम तारीख को 31 दिसंबर, 2024 तक बढ़ा दिया है। इस फैसले के खिलाफ असम जातीय परिषद (AJP) ने केंद्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया।
राज्यव्यापी भूख हड़ताल
ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) ने गुरुवार को राज्यव्यापी भूख हड़ताल शुरू की, जिसमें अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को निकालने और असम समझौते को पूरी तरह लागू करने की मांग की गई। अगस्त 2024 में 50 वर्षीय दुलोन दास असम में CAA के तहत नागरिकता पाने वाले पहले व्यक्ति बने। गौरतलब है कि 2019 और 2020 की शुरुआत में CAA के खिलाफ असम में हिंसक प्रदर्शन हुए थे, जिसमें पांच लोगों की मौत हो गई थी।
धार्मिक संबद्धता की परवाह
असम समझौते के तहत, 24 मार्च, 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले विदेशियों को, उनकी धार्मिक संबद्धता की परवाह किए बिना, निर्वासित किया जाना है। पिछले साल जुलाई में असम सरकार ने अपनी सीमा पुलिस को निर्देश दिया था कि 31 दिसंबर, 2014 से पहले प्रवेश करने वाले गैर-मुस्लिम अवैध प्रवासियों के मामलों को विदेशी न्यायाधिकरणों (FTs) को न भेजा जाए, बल्कि उन्हें CAA के तहत नागरिकता के लिए आवेदन करने की सलाह दी जाए।





