Eloji Devta : देशभर में होली (Holi 2023) को लेकर लोगों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। सभी लोग अपने- अपने घरों में तरह- तरह के पकवान बनाने में जुटे हुए हैं। बाजारें पिचकारी, रंग, गुलाल और अबीरों से सजकर तैयार है। लोग लगातार खरीददारी करने में लगे हुए हैं। बता दें हमारे देश में हर त्यौहार का अपना एक अलग ही महत्व होता है। हर जगह पर अलग- अलग प्रकार से होली खेली जाती है। इसी कड़ी एक देवता ऐसे भी है जो केवल कुंवारों की मन्नतें पूरी करते हैं और होली पर इनकी विशेष पूजा भी होती है। यदि आप भी कुंवारे हैं और जीवनसाथी की तलाश में हैं तो इस होली कुंवारे के देवता को खुश करें। तो चलिए आज के आर्टिकल में हम आपको इनकी दिलचस्प कहानी और इनकी के बारे में विस्तार से बताते हैं।
होली के एक दिन पहले होती है पूजा
दरअसल, राजस्थान में होली के एक दिन पहले कुंवारे युवक इलोजी देवता की पूजा की जाती है, जिसे “इलोजी की पूजा” या “इलोजी का मेला” कहा जाता है। इस परंपरा के अनुसार, कुंवारे युवकों को इलोजी देवता का वरदान दिया जाता है जो उन्हें शादी के लिए शुभ माना जाता है। इसमें युवक इलोजी देवता की पूजा के लिए जमीन पर बनाए गए छोटे-छोटे गड्ढों में दीये जलाए जाते हैं। उन्हें उन्हीं गड्ढों में बैठकर भोजन करना होता है और उन्हें आसन के रूप में बांस के छिद्र दिए जाते हैं। उन्हें इलोजी देवता के नाम से खिलौने भी दिए जाते हैं। इस पूजा के बाद, युवकों को एक दूसरे के साथ दुल्हन का वरदान मांगने का अवसर मिलता है। इस परंपरा में शामिल होने वाले युवकों को धन, समृद्धि और सुख की प्रार्थना की जाती है।
संस्कृति का अहम हिस्सा
राजस्थान में होली को “फागु” नाम से भी जाना जाता है। फागु का अर्थ होता है “धमाल” या “धूमधाम से मनाना”। राजस्थान के कुछ हिस्सों में, फागु खेल तीन दिन तक चलता है और लोग इसमें नृत्य करते हैं और गाने गाते हैं। इस खेल में लोग एक दूसरे पर रंग फेंकते हैं और इस रंग फेंक के माध्यम से वे एक दूसरे के साथ खुशी मनाते हैं। फागु खेल में लोग विभिन्न परंपरागत वाद्य और नृत्य अभ्यास करते हैं और इसे अपनी संस्कृति का एक अहम हिस्सा मानते हैं।
परिक्रमा पूरी करने से मन्नतें होती है पूरी
यह परंपरा पोखरण के लाल किले पर होली से पहले इलोजी देवता की पूजा के रूप में मनाई जाती है और यह आमतौर पर दो दिन चलती है, जो पूर्णिमा से शुरू होता है। इस परंपरा में, कुछ कुंवारे लड़के पूजा में इलोजी देवता से शादी की मन्नत करते हैं। इस परंपरा के तहत, पूजा में इलोजी देवती की प्रतिमा के चारों ओर परिक्रमा किया जाता है। इसके बाद, पूजा के लिए गुलाल और प्रसाद चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि जो लड़का इलोजी देवता की प्रतिमा के आसपास पाँच बार परिक्रमा कर लेता है उसे शादी करने में कोई देरी नहीं होती है।
जानिए क्यों इलोजी देवता की होती है पूजा
बता दें कि इलोजी देवता होलिका के मंगेतर थे। जिन्होंने जब उनकी मृत्यु की खबर सुनी तो वह बहुत आहत हुए और जीवनभर कुंआरे रहने का फैसला किया। तब से ही उनकी पूजा की जाने लगी। ऐसी मान्यता है कि जिसकी शादी समय पर नहीं होती है वह इलोजी देवता की पूजा करता है और शादी के लिए आशीर्वाद मांगता है।
जानिए इलोजी देवता की कथा
किवदन्ती के मुताबिक, इलोजी देवता भक्त प्रह्लाद की बुआ होलिका के मंगेतर थे। इलोजी देवता की कथा भगवान विष्णु के अनुयायी प्रह्लाद से जुड़ी हुई है। प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप उसे भगवान विष्णु के प्रति भक्ति न करने के लिए कहते थे और उसे कई तरह के उत्पीड़नों से गुज़रना पड़ता था। एक दिन हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे को समुद्र के किनारे ले जाकर उसे मृत्यु के भय से डराया। प्रह्लाद ने उस स्थान पर भगवान विष्णु के स्मरण में खो जाने के बाद भगवान विष्णु ने उसे रक्षा की अपील सुनी और उसे संरक्षित करने के लिए नरसिंह अवतार धारण किया। नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप को मार डाला और प्रह्लाद को उसकी रक्षा की। यह कथा इलोजी देवता की एक मूर्ति को लेकर जुड़ी हुई है, जो प्रह्लाद के बारे में अपनी भक्ति और उसकी रक्षा की याद दिलाती है। इसीलिए, इलोजी देवता की पूजा में युवक इसे शादी के वरदान के रूप में मांगते हैं।
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं अलग-अलग जानकारियों पर आधारित हैं। MP Breaking News इनकी पुष्टि नहीं करता है।)