Holika Dahan 2023 : होलिका दहन भारत में होली के अवसर पर मनाई जाती है। इस उत्सव के दौरान होली के पूर्व दिनों में होलिका दहन का आयोजन किया जाता है, जो अंधविश्वासों को दूर करने के साथ-साथ सालों पूरानी दुश्मनी को भी खत्म करता है। होलिका दहन का मतलब होता है कि होलिका की राख जलाई जाती है। इसे होली के पहले दिन रात्रि में किया जाता है। यह राख हिरण्यकश्यप से संबंधित है, जो भगवान विष्णु की भक्ति करता था। उनकी बुआ होलिका उन्हें फंसाने की कोशिश करती थी लेकिन उन्होंने अपनी भक्ति की शक्ति से उसे पराजित कर दिया था। इस घटना को स्मरण करते हुए होलिका दहन का आयोजन किया जाता है, जिससे संबंधित अंधविश्वास और बुरे भावों को नष्ट कर दिया जाता है।
यहां जानें तीथी
इस साल पूर्णिमा तिथि दो दिन पड़ रही है, इसलिए कुछ स्थानों पर होलिका दहन की तारीख को लेकर संशय उत्पन्न हो रहा है। हालांकि, आमतौर पर होलिका दहन का पर्व फाल्गुन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो इस साल 6 मार्च रविवार को है। इस साल होलिका दहन का शुभ मुहूर्त होलिका दहन का शुभ मुहूर्त दिनांक 6 मार्च, 2023 की रात 6:10 बजे से 7 मार्च, 2023 की सुबह 8:24 बजे तक है।
शुभ मुहूर्त
फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि का समापन- 7 मार्च, मंगलवार को शाम 06 बजकर 09 मिनट पर
भद्रा- 6 मार्च को शाम 04 बजकर 17 मिनट से शुरू होकर 7 मार्च को भद्रा सुबह 5 बजकर 15 मिनट तक
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त- 07 मार्च, मंगलवार को शाम 06 बजकर 12 मिनट से रात 08 बजकर 39 मिनट तक रहेगा।
स्थानीय पंचांग के अनुसार
हालांकि, होलिका दहन की तारीख का निर्धारण आमतौर पर स्थानीय पंचांग के अनुसार किया जाता है। यदि अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न पंचांग अनुसार होलिका दहन की तारीख निर्धारित होती है, तो उस स्थान के लोग अपने स्थानीय पंचांग के अनुसार ही इसे मनाने की सलाह दी जाती है। कुछ जगहों पर स्थानीय परंपराओं और व्यक्तिगत आवश्यकताओं के आधार पर, इसे एक दिन पहले यानी 6 मार्च को या 7 मार्च को भी किया जा सकता है। इसलिए, लोग अपने स्थानीय परंपराओं और समझदारी के आधार पर होलिका दहन की तारीख का चयन कर सकते हैं।
पूजन सामग्री
- एक छोटा सा कुंड या ब्रिक्स या मिट्टी का चूल्हा
- लकड़ी का सामान
- घी, कपूर, गुड़, सुगंधित धूप, गोला, अगरबत्ती, इत्र, सुई, चाकू, फूल, धातु की कलश और गंगाजल।
पूजन विधि
- सबसे पहले एक सुथरी लें और उसे गंगाजल से अभिषेक करें। फिर सुथरी को उस जगह से गुमराह करें, जहां आप होली दहन का आयोजन करने जा रहे हैं।
- अब एक छोटे से कुंड का निर्माण करें। इस कुंड के बीच में लकड़ी की बेल जलाएं।
- उसके बाद, अब उस कुंड में घी डालें। फिर गुड़ को कुंड में डालें।
- इसके बाद, आप हल्की धूप जला सकते हैं। फिर आप लोग होली दहन के लिए तैयार हैं।
क्यों मनाते हैं होलिका दहन
होलिका दहन का इतिहास महाभारत से जुड़ा हुआ है। यह कहानी भगवान विष्णु के अवतार प्रह्लाद की है, जो राजा हिरण्यकश्यप के पुत्र थे। हिरण्यकश्यप अपने बाहुबली शक्ति का आनंद लेने के लिए देवताओं और भगवान का विरोध करता था। प्रह्लाद भगवान विष्णु के भक्त थे और हिरण्यकश्यप के विरोध का सामना करते थे। इसे देखते हुए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता ली, जो असंभव था कि जलते हुए लकड़ी के बिना प्रह्लाद को जलाएगी। होलिका ने प्रह्लाद को अपने गोद में बैठाकर उसे जलाने का प्रयास किया लेकिन भगवान की कृपा से प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका अंत में जलती हुई थी। इस इतिहास को याद रखते हुए होली के उत्सव में होलिका दहन का आयोजन किया जाता है।
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं अलग-अलग जानकारियों पर आधारित हैं। MP Breaking News इनकी पुष्टि नहीं करता है।)