Horrible River: भारत की वो नदी जिसे छूने के नाम से कांपती है लोगों की रूह, कहलाती है शापित

भारत में कई प्रसिद्ध और पवित्र नदियां हैं जिन्हें मोक्षदायिनी और पापनाशिनी के नाम से जाना जाता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु इन नदियों को देवी के रूप में पूजते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में कैसे भी नदी (Horrible River) है जिसके नाम से ही लोग डर जाते हैं।

Horrible River India: भारत में नदियों और तालाबों का बहुत महत्व है और इनकी पूजा देवी देवताओं के रूप में की जाती है। देश में कई नदियां हैं जिन्हें मोक्षदायिनी और पापनाशिनी कहा जाता है। बड़ी संख्या में लोग इन नदियों में अपने पाप का नाश करने के लिए डुबकियां लगाने के लिए पहुंचते हैं। आज हम आपको एक ऐसी नदी के बारे में बताते हैं जिसके पास जाने और उसे छूने से लोग घबराने लगते हैं।

नदी को छूना तो दूर अगर कोई इसका नाम भी ले लेता है तो लोगों के चेहरे पर खौफ नजर आने लगता है। आज हम आपको बताते हैं कि आखिरकार ऐसी क्या वजह है जो इस नदी को लेकर लोगों में इतना ज्यादा भय बना हुआ है कि कोई इसके पास जाना भी पसंद नहीं करता है।

ऐसी है Horrible River की कहानी

डरावनी नदी के नाम से मशहूर यह नदी बिहार और उत्तर प्रदेश में बहती है लेकिन इसका अधिकतम हिस्सा यूपी में आता है। दिल्ली से पटना की तरफ ट्रेन से जाते हुए बक्सर नदी पड़ती है जिस पर आपकी नजर कभी ना कभी पड़ी ही होगी। उत्तर प्रदेश की सीमा से जब भी बिहार में कोई ट्रेन प्रवेश करती है तो एक नदी बीच में आती है जिसका नाम कर्मनाशा है। यही वह नदी है जिसके नाम का खौफ लोगों में बना हुआ है।

Horrible River

अपने नाम के मुताबिक यह नदी बदनाम है क्योंकि कर्म और नाश दो शब्दों से मिलकर इसका नाम बना हुआ है। जिससे कई सारे मिथक और पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई है। यह नदी उत्तर प्रदेश के सोनभद्र, चंदौली, वाराणसी और गाजीपुर से बहती हुई बक्सर के पास पहुंचकर गंगा में मिल जाती है और इसके बाद पवित्र हो जाती है।

कर्मनाशा से जुड़ी पौराणिक कहानी

इस खौफनाक नदी का नाम राजा हरिश्चंद्र के पिता सत्यव्रत की कहानी से जुड़ा हुआ है। कथा के मुताबिक सत्यव्रत महर्षि वशिष्ठ और महर्षि विश्वामित्र के बीच चलने वाली प्रतिद्वंदिता के शिकार हुए।

सत्यव्रत अपने शरीर के साथ स्वर्ग जाना चाहते थे और उन्होंने अपनी यह इच्छा महर्षि वशिष्ठ के सामने रखी तो उन्होंने ऐसा वरदान देने से मना कर दिया। जब उन्होंने यह बात महर्षि विश्वामित्र को बताई तो पुरानी प्रतिद्वंद्विता के चलते उन्होंने अपने तप के बल से सत्यव्रत के शरीर को तुरंत ही शरीर समेत स्वर्ग में पहुंचा दिया।

सत्यव्रत के शरीर समेत स्वर्ग पहुंचने से इंद्रदेव बहुत नाराज हुए और उन्होंने श्राप देते हुए उल्टा सिर कर उन्हें वापस धरती पर भेज दिया। लेकिन महर्षि विश्वामित्र ने उन्हें धरती और स्वर्ग के बीच में ही रोक दिया जिस कारण से उन्हें त्रिशंकु भी कहा जाता है।

इधर महर्षि वशिष्ठ नाराज हो गए और उन्होंने सत्यव्रत को चांडाल बनने का श्राप दे दिया। सत्यव्रत का सिर उल्टा था और उनके मुख से लगातार लार टपक रही थी जिसने गिरते-गिरते नदी का रूप धारण कर लिया और इसे ही कर्मनाशा कहा जाने लगा। यही वजह है कि इस नदी का पानी इस्तेमाल करने से लोग आज भी डरते हैं।

जुड़े हैं कई मिथक

सत्यव्रत की इस पौराणिक कथा के अलावा एक और कहानी है जो इस नदी से जुड़ी हुई है। कहानी के मुताबिक एक बार एक साधु इस नदी में स्नान कर रहे थे तभी वहां पर कुछ युवक पहुंचे और मौज मस्ती करने लगे। साधु ने उन्हें यहां से दूर चले जाने को कहा लेकिन युवक नहीं माने और बार-बार उनकी तपस्या में विघ्न डालने लगे।

युवकों की हरकत से परेशान साधु ने उन्हें श्राप दिया कि जिस तरह से उनकी साधना में बाधा डाल रहे हैं। उस तरह से उनका कोई भी काम कभी भी नहीं बनेगा। साधु ने ये श्राप तो युवकों को दिया था लेकिन वह नदी में खड़े हुए थे इस वजह से इसका भागी नदी भी बन गई। इस घटना के बाद से जो भी इस नदी को छूता था उसके सारे काम बिगड़ने लगते थे। यही वजह है कि कोई भी इस नदी को छूने या इसके पास जाने से डरता है और सभी लोग इसे अशुभ मानते है।

यह पौराणिक कथाएं क्या कहना चाहती हैं और इन्हें क्यों सुनाया जाता है यह कह पाना तो मुश्किल है लेकिन इससे जुड़ी बातों की वजह से कर्मनाशा अपने नाम के अनुरूप ही बदनाम हो चुकी है और एक नदी होने के बावजूद भी कोई इसके पास तक नहीं जाता है। बिहार से निकली इस नदी की लंबाई 192 किलोमीटर है और यह आखिर में गंगा में मिल जाती है।