भारत ने एक बार फिर वैश्विक मंच पर अपनी आर्थिक और औद्योगिक मजबूती का परिचय दिया है। कोयला उत्पादन जैसे रणनीतिक क्षेत्र में भारत ने दुनिया को चौंकाते हुए दूसरा स्थान हासिल किया है। एनर्जी इंस्टीट्यूट की “Statistical Review of World Energy 2024” रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने 2023 में 1085.1 मिलियन टन कोयले का उत्पादन किया था, जिससे वह चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक देश बन गया है।
यह रिपोर्ट इस मायने में बेहद अहम है क्योंकि यह न केवल ऊर्जा क्षेत्र की तस्वीर पेश करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि भारत किस तेजी से एक ऊर्जा महाशक्ति के रूप में उभर रहा है।
एनर्जी रिपोर्ट 2024 में भारत की मजबूती दर्ज
Statistical Review of World Energy 2024 के मुताबिक, चीन ने 4780 मिलियन टन कोयला उत्पादन के साथ पहला स्थान बरकरार रखा है, जो भारत से लगभग चार गुना ज्यादा है। इसके बाद भारत का नंबर आता है, जिसने अमेरिका (464.6 मिलियन टन), रूस (427.2 मिलियन टन) और ऑस्ट्रेलिया (462.9 मिलियन टन) जैसे विकसित देशों को भी पीछे छोड़ दिया है। इंडोनेशिया, जिसने 836.1 मिलियन टन कोयला निकाला, वह तीसरे स्थान पर रहा। यह भी दर्शाता है कि एशियाई देश अब ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में विश्व पटल पर अपनी गहरी छाप छोड़ रहे हैं।
चीन बना कोयला उत्पादन में अपराजेय
हालांकि चीन का कोयला उत्पादन भारत से काफी अधिक है, लेकिन भारत की तेजी से बढ़ती उत्पादन क्षमता और मांग ने विश्लेषकों का ध्यान खींचा है। भारत में लगातार हो रहे औद्योगिक विस्तार, बढ़ती ऊर्जा खपत और बिजली की मांग को देखते हुए कोयले का उत्पादन और आपूर्ति बढ़ाना जरूरी हो गया है।
भारत के कोयला मंत्रालय और कोल इंडिया जैसी कंपनियों ने उत्पादन में लगातार सुधार किया है, जिससे देश को ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर एक बड़ा कदम मिला है। इस उपलब्धि को लेकर ऊर्जा विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि भारत यह गति बनाए रखता है तो वह भविष्य में वैश्विक ऊर्जा नीति निर्धारण में बड़ी भूमिका निभा सकता है।
ऊर्जा सुरक्षा में कोयला बना अहम कड़ी
भारत जैसे विकासशील देश के लिए कोयला अभी भी बिजली उत्पादन का सबसे बड़ा स्रोत है। भारत की कुल ऊर्जा जरूरतों का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा कोयले से पूरा होता है। कोयले की इस भूमिका के चलते ही भारत का कोयला क्षेत्र लगातार विस्तार कर रहा है।
बिजली उत्पादन, इस्पात उद्योग और भारी मशीनरी निर्माण में कोयले की भूमिका अहम है। कोयले की घरेलू आपूर्ति से विदेशी आयात पर निर्भरता कम हुई है, जिससे चालू खाता घाटा कम करने में भी मदद मिल रही है। इसके साथ ही, ग्रामीण विद्युतीकरण और उद्योगों की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में कोयले की भागीदारी ने भारत को एक मजबूत आर्थिक आधार दिया है।
भारत का नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संतुलित रुख
हालांकि कोयला उत्पादन और उपयोग में भारत ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है, लेकिन यह भी सच है कि कोयला एक प्रदूषणकारी ईंधन है, जिससे कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे जुड़े हैं। भारत सरकार इस बात को भलीभांति समझती है और इसी के चलते नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर, पवन और जलविद्युत पर भी समानांतर रूप से काम कर रही है। भारत ने वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है।
इस दिशा में भारत का प्रयास सराहनीय है कि वह एक ओर अपनी औद्योगिक जरूरतों को कोयले से पूरा कर रहा है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण संरक्षण को भी प्राथमिकता दे रहा है।
भारत का कोयला उत्पादन में दूसरा स्थान हासिल करना उसकी आर्थिक और ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ती ताकत का प्रमाण है। जहां एक ओर भारत ने अमेरिका, रूस और ऑस्ट्रेलिया जैसे शक्तिशाली देशों को पीछे छोड़ा है, वहीं दूसरी ओर यह भी सुनिश्चित कर रहा है कि पर्यावरणीय दायित्वों की अनदेखी न हो। भारत की यह संतुलित रणनीति उसे भविष्य की ऊर्जा महाशक्ति बनने की दिशा में अग्रसर कर रही है।





