भारत सरकार 15 अगस्त को अलास्का में होने वाली रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बैठक पर करीबी नजर रखे हुए है। यह बैठक ऐसे समय में हो रही है, जब अमेरिका ने भारत से रूसी तेल खरीदने के जवाब में भारतीय आयात पर 25% अतिरिक्त शुल्क लगाया है, जिससे कुल शुल्क 50% हो गया है। नई दिल्ली रूस-यूक्रेन युद्ध के जल्द समाधान की उम्मीद कर रही है, क्योंकि शुल्क लागू होने की समयसीमा नजदीक आ रही है। भारतीय वार्ताकार वाशिंगटन से इन शुल्कों को वापस लेने के लिए कड़ा प्रयास कर रहे हैं, लेकिन वे कोई जल्दबाजी में धारणा नहीं बनाना चाहते।
सरकारी सूत्रों ने इस धारणा को खारिज किया कि भारत ट्रंप के नेतृत्व शैली को नहीं समझता। उन्होंने कहा कि अधिकारी ट्रंप की कार्यशैली से अच्छी तरह वाकिफ हैं, लेकिन अमेरिका में संस्थागत संतुलन कमजोर हुआ है जिसका असर विश्वविद्यालयों, न्यायपालिका और पुलिस जैसे संस्थानों पर पड़ा है। सूत्रों ने बताया कि ट्रंप ने पिछले आठ महीनों में कई सफलताएं हासिल की हैं, जिसमें आप्रवासन जैसे विवादास्पद मुद्दों पर भी कम विरोध देखा गया। भारत ट्रंप के पूरे चार साल के कार्यकाल के लिए तैयार है, लेकिन कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर भारत सहमति नहीं दे सकता, जो अन्य देश शायद ट्रंप को दे सकते हैं।
भारत का रुख स्पष्ट
भारत का रुख स्पष्ट है कि वह क्रिप्टो, तेल भंडार या खनिजों पर अपनी स्वायत्तता नहीं छोड़ेगा, क्योंकि ये सैद्धांतिक मुद्दे हैं। सूत्रों ने कहा कि भारत ट्रंप की मंशा को समझता है, लेकिन अत्यधिक लेन-देन आधारित दृष्टिकोण भारत के हितों के अनुकूल नहीं है। खासकर अगर इससे देश के लोगों या संसाधनों पर असर पड़ता है। सरकार इन शुल्कों का बोझ जनता, विशेष रूप से छोटे व्यवसायों पर नहीं डालना चाहती।
फ्रांस और जर्मनी के साथ संबंध
इस बीच, भारत के यूरोपीय संघ के देशों, विशेष रूप से फ्रांस और जर्मनी के साथ संबंध बेहतर हुए हैं, जिन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के लिए चीन की यात्रा की तैयारी कर रहे हैं, जबकि पुतिन की भारत यात्रा भी इस साल के अंत में होने वाली है। इसके अलावा, ब्रिक्स समूह के पुनर्जनन पर भी ध्यान केंद्रित है।





