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Mon, Dec 22, 2025

क्या ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामेनेई की रगों में बहता है ‘हिंदी’ खून? यहाँ जानिए भारत से फारस तक फैली इस ऐतिहासिक विरासत की अनसुनी कहानी!

Written by:Ronak Namdev
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क्या आपको पता है कि ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई का रिश्ता उत्तर प्रदेश के बाराबंकी से है? उनके दादा सैयद अहमद मुसावी हिंदी का जन्म यहीं हुआ था। यह ऐतिहासिक संबंध भारत-ईरान के पुराने धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रिश्तों को नए नजरिए से देखने का अवसर देता है।
क्या ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामेनेई की रगों में बहता है ‘हिंदी’ खून? यहाँ जानिए भारत से फारस तक फैली इस ऐतिहासिक विरासत की अनसुनी कहानी!

भारत के ज़मीनी नक्शे पर बाराबंकी का छोटा सा किण्टूर गांव आज ईरान की सबसे ऊँची आध्यात्मिक और राजनीतिक सत्ता से जुड़ा माना जाता है। यहाँ से निकले सैयद अहमद मुसवी हिंदी ने 19वीं सदी में शिया  के साथ फारस की ओर कदम बढ़ाया, जिससे आज के खामेनेई की विरासत का आधार बना।धर्म की शिक्षा

किण्टूर गांव में पैदा हुए सैयद अहमद मुसवी हिंदी, जो बाद में ईरान में स्थायी रूप से बस गए, उन्होंने फैमिली जड़ों पर ‘हिंदी’ उपनाम रखा, जो आज भी फारसी रिकॉर्ड्स में दर्ज है। इन्होंने धार्मिक अध्ययन के बाद ईरान के क्लेरिकल तंत्र में अपनी पहचान बनाई और फारसी समाज में उच्च स्थिति प्राप्त की। यही परिवारीय विरासत उनके पोते आयतुल्ला रुहोल्ला खुमैनी के माध्यम से आधुनिक ईरान की राजनीतिक संरचना को आकार देने में मददगार साबित हुई।

भारत से फारस: शिया धर्म की ओट से पलायन की शुरुआत

19वीं सदी में भारत-उत्तर प्रदेश में शिया समुदाय को धार्मिक आज़ादी की तलाश थी। इसी दौर में सैयद अहमद मुसवी हिंदी ने 1830 में भारत छोड़कर पहले नजफ, फिर ईरान जाकर स्थायी रूप से बस जाने का निर्णय लिया। उनके इस कदम ने भारत-फारस के बीच आध्यात्मिक और सांस्कृतिक सेतु का मार्ग खोल दिया।

इन्होंने ईरान में दर्ज ‘हिंदी’ उपनाम बनाए रखा, जिससे उनकी भारतीय पहचान बनी रही। उनकी वंशजों में रुहोल्ला खुमैनी शामिल थे, जिन्होंने 1979 की इस्लामी क्रांति का नेतृत्व किया और ईरान को धार्मिक शासन में बदल दिया। इस यात्रा का परिणाम आज के ईरान की साजिश योजनाओं और शासन संरचना को गहराई से प्रभावित करता है।

 

विरासत का धार्मिक और राजनीतिक करियर

रुहोल्ला खुमैनी, सैयद अहमद की परंपरा के वाहक, को इस्लामी क्रांति का जनक माना जाता है। उनके पोते, अयातुल्ला अली खामेनेई, ने इस विरासत को आगे बढ़ाया। खामेनेई की विचारधारा और नेतृत्व में भारतीय जुड़ाव की गूंज सुनाई देती है, जो फारस और भारत के बीच गहरे सांस्कृतिक संबंधों को दर्शाता है।

आज खामेनेई मध्य-पूर्व में ईरान की सख्त स्थिति के प्रतीक बन चुके हैं। उनकी भूमिकाएं वैश्विक राजनीति में भारी असर डाल रही हैं, विशेषकर जब इस्राइल और ईरान के बीच हाल के तनाव चरम पर हैं।