कर्नाटक में मुख्यमंत्री बदलने की चर्चा गरमाई हुई है। मुख्य रूप से सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के भीतर नेतृत्व को लेकर चल रही खींचतान के कारण यह मुद्दा जोर पकड़ रहा है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच सत्ता साझेदारी को लेकर तनाव की खबरें हैं जिसके चलते यह अटकलें तेज हुई हैं कि नवंबर 2025 तक शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस हाईकमान ने ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री कार्यकाल के फॉर्मूले पर विचार किया था जिसके तहत सिद्धारमैया के कार्यकाल के बाद शिवकुमार को मौका मिल सकता है। हालांकि, कांग्रेस के कर्नाटक प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों को खारिज किया है लेकिन पार्टी के कुछ विधायकों के बयान (जैसे इकबाल हुसैन का दावा कि शिवकुमार दो महीने में मुख्यमंत्री बनेंगे) ने इस चर्चा को हवा दी है।
कांग्रेस विधायक विजयानंद कशप्पनावर ने बीजेपी पर सरकार गिराने और विधायकों की खरीद-फरोख्त की कोशिश का आरोप लगाया है। उन्होंने दावा किया कि बीजेपी ने 55 कांग्रेस विधायकों की सूची तैयार की है जिन्हें केंद्रीय एजेंसियों जैसे ईडी और सीबीआई के दबाव में लाकर बीजेपी में शामिल करने की योजना है। इसके जवाब में केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने पलटवार करते हुए कहा कि खरीद-फरोख्त की कोशिशें कांग्रेस के भीतर ही हो रही हैं जहां सिद्धारमैया और शिवकुमार अपने-अपने समर्थन में विधायकों को एकजुट करने के लिए धनबल का इस्तेमाल कर रहे हैं। बीजेपी ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि वह जनादेश का सम्मान करती है और कांग्रेस को उसका 5 साल का कार्यकाल पूरा करने देना चाहती है।
कांग्रेस की आंतरिक कलह सामने
कर्नाटक का मौजूदा राजनीतिक घमासान कांग्रेस की आंतरिक कलह और बीजेपी के साथ चल रहे आरोप-प्रत्यारोप के खेल का परिणाम है। सिद्धारमैया ने दावा किया है कि वह अपना कार्यकाल पूरा करेंगे जबकि शिवकुमार के समर्थकों का मानना है कि उनकी लोकप्रियता और संगठनात्मक ताकत उन्हें मुख्यमंत्री पद का मजबूत दावेदार बनाती है। इस बीच, कुछ कांग्रेस विधायकों (जैसे राजू कागे और बी.आर. पाटिल) ने अपनी ही सरकार पर विकास और भ्रष्टाचार के मुद्दों को लेकर असंतोष जताया है। इससे पार्टी की एकता पर सवाल उठ रहे हैं। बीजेपी इस स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है लेकिन उसने आधिकारिक तौर पर सरकार गिराने की मंशा से इनकार किया है।
कांग्रेस हाईकमान के लिए चुनौती
यह स्थिति कर्नाटक की राजनीति को अनिश्चितता की ओर ले जा रही है। कांग्रेस हाईकमान के लिए यह चुनौती है कि वह अपने नेताओं के बीच संतुलन बनाए और विधायकों के असंतोष को नियंत्रित करे। अगर नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें हकीकत में बदलती हैं तो यह कांग्रेस की संगठनात्मक एकता और 2028 के विधानसभा चुनावों में उसकी संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है। वहीं, बीजेपी इस अवसर का इस्तेमाल कांग्रेस को कमजोर करने और अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कर सकती है।





