कर्नाटक हाई कोर्ट ने तीन मुस्लिम व्यक्तियों (मुस्तफा मुरतुजासाब मोमिन, अलीसाब शब्बीर अलगुंडी और सुलेमान रियाज गलगली) के खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है। इन पर जामखंडी के रामतीर्थ मंदिर के पास इस्लामी पर्चे बांटने और हिंदू धर्म के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप था। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि धार्मिक प्रचार अपने आप में अपराध नहीं है जब तक कि इसमें जबरन या प्रलोभन के साथ धर्म परिवर्तन की कोशिश न हो। यह मामला मई 2025 में जामखंडी ग्रामीण पुलिस स्टेशन में दर्ज एक प्राथमिकी से शुरू हुआ था।
प्राथमिकी में स्थानीय नाई ने दावा किया था कि आरोपियों ने मंदिर के पास इस्लामी शिक्षाओं को बढ़ावा देने वाले पर्चे बांटे और हिंदू धर्म के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां कीं। उसने यह भी आरोप लगाया कि उन्होंने विरोध करने वालों को धमकी दी और दुबई में नौकरी जैसे भौतिक लाभ का प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन के लिए उकसाया। आरोपियों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत नफरत फैलाने और धमकाने के साथ-साथ कर्नाटक धर्म स्वतंत्रता संरक्षण अधिनियम, 2022 की धारा 5 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
शिकायत स्वयं दोषपूर्ण
न्यायमूर्ति वेंकटेश नाइक टी ने 17 जुलाई को दिए अपने आदेश में कहा कि शिकायत स्वयं दोषपूर्ण थी। उन्होंने बताया कि धर्म परिवर्तन विरोधी कानून की धारा 4 के तहत केवल धर्म परिवर्तन कराने वाले व्यक्ति या उनके नजदीकी रिश्तेदार ही शिकायत दर्ज कर सकते हैं। इस मामले में शिकायतकर्ता एक असंबंधित तीसरा पक्ष था,जिसके कारण प्राथमिकी कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपों को पूरी तरह स्वीकार करने पर भी, वे धारा 3 के तहत अपराध के आवश्यक तत्वों को पूरा नहीं करते।
धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर
कोर्ट ने पाया कि रिकॉर्ड में ऐसा कोई सबूत नहीं था जो यह दर्शाए कि किसी का धर्म परिवर्तन हुआ या आरोपियों ने वास्तव में किसी को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया। प्राथमिकी के आरोपों को उनके मूल रूप में स्वीकार करने पर भी, वे धारा 3 के तहत अपराध के आवश्यक तत्वों को पूरा करने में विफल हैं। न्यायाधीश ने कहा और प्राथमिकी को पूरी तरह से रद्द कर दिया।





