महाराणा प्रताप जयंती: वीरता और स्वाभिमान की अमर गाथा, मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए जीवनभर किया संघर्ष

आज का दिन भारत के इतिहास में स्वाभिमान, साहस और स्वतंत्रता की प्रतीक गाथा के रूप में याद किया जाता है। महाराणा प्रताप, जिन्होंने मुगल सम्राट अकबर के आगे कभी सिर नहीं झुकाया, अपने राज्य और धर्म की रक्षा के लिए जंगलों, पर्वतों और गुफाओं में जीवन बिताया। हल्दीघाटी का युद्ध उनका अपराजेय आत्मबल और नेतृत्व क्षमता का परिचायक है। उनकी जयंती हमें याद दिलाती है कि मातृभूमि की रक्षा के लिए अडिग संकल्प और आत्मबल ही सच्चा शौर्य है।

Maharana Pratap Jayanti : आज देशभर में महाराणा प्रताप जयंती धूमधाम से मनाई जा रही है। मेवाड़ के इस महान योद्धा के आत्मसम्मान और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की कहानियां आज भी हर भारतीय के दिल में बसती हैं। उनका जीवन उस समय की याद दिलाता है जब एक ओर सम्राट अकबर पूरे भारत पर अपना साम्राज्य फैला रहे थे और दूसरी ओर महाराणा प्रताप जैसे राजपूत योद्धा नतमस्तक होने के बजाय जंगलों, पर्वतों और गुफाओं में संघर्ष कर रहे थे, सिर्फ इसलिए कि उनकी मातृभूमि स्वतंत्र रहे।

आज के दिन सीएम मोहन यादव ने महाराणा प्रताप को श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने X पर लिखा कि ‘राष्ट्र गौरव, साहस, शौर्य और देशभक्ति के प्रतीक, वीर शिरोमणि श्रद्धेय महाराणा प्रताप जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन करता हूँ। मातृभूमि की स्वतंत्रता, धर्म और संस्कृति की रक्षा हेतु समर्पित आपका जीवन अनंतकाल तक प्रत्येक भारतीय को राष्ट्र के उत्थान में अपने सर्वोच्च योगदान की प्रेरणा देता रहेगा।’

वीर योद्धा महाराणा प्रताप की जयंती

महाराणा प्रताप, मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के 13वें शासक थे। उनका जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के कुम्भलगढ़ में हुआ था।उनके पिता महाराणा उदय सिंह द्वितीय और माता रानी जीवत कंवर थीं। महाराणा प्रताप का शासनकाल (1572-1597) मेवाड़ के इतिहास का स्वर्णिम काल माना जाता है। उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार करने से इनकार कर दिया और अपने राज्य की स्वतंत्रता के लिए जीवनभर संघर्ष किया। उनकी वीरता और दृढ़ संकल्प ने उन्हें एक किंवदंती बना दिया है।

जीवनभर किया मातृभूमि के लिए संघर्ष

महाराणा प्रताप का जीवन कठिनाइयों और युद्धों से भरा था। बचपन से ही उन्हें युद्धकला, घुड़सवारी और शस्त्र संचालन में प्रशिक्षण मिला। 1572 में मेवाड़ का राजा बनने के बाद उन्होंने मुगल साम्राज्य की बढ़ती ताकत का सामना किया। मुगल शासक अकबर ने मेवाड़ को अपने अधीन करने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन महाराणा प्रताप ने कभी हार नहीं मानीं।

उनकी सबसे प्रसिद्ध विशेषता थी उनका स्वाभिमान। कहा जाता है कि उन्होंने जंगल में जीवन बिताया, घास की रोटियां खाईं..लेकिन मुगलों के सामने अपना सिर नहीं झुकाया। उनके प्रिय घोड़े चेतक की वफादारी और युद्ध में योगदान भी इतिहास में अमर है। प्रताप का नेतृत्व इतना प्रेरणादायक था कि उनके सैनिक और प्रजा उनके साथ अंत तक खड़े रहे।

हल्दीघाटी का युद्ध

महाराणा प्रताप की वीरता का सबसे बड़ा उदाहरण 1576 में लड़ा गया हल्दीघाटी का युद्ध है। इस युद्ध में उनकी सेना ने अकबर की विशाल सेना, जिसका नेतृत्व मान सिंह और आसफ खान कर रहे थे, का पूरी वीरता के साथ डटकर मुकाबला किया। हालांकि मेवाड़ की सेना संख्या में कम थी फिर भी महाराणा प्रताप और उनके योद्धाओं ने अद्भुत शौर्य दिखाया और जमकर लोहा लिया। महाराणा प्रताप का का निधन 19 जनवरी 1597 को हुआ था। वे उस समय चावंड (वर्तमान उदयपुर ज़िले में स्थित) में रह रहे थे, जो उस दौर में मेवाड़ की अस्थायी राजधानी थी। महाराणा प्रताप की जयंती न सिर्फ उनकी वीरता को याद करने का अवसर है, बल्कि यह हमें स्वतंत्रता, आत्मसम्मान और दृढ़ता के मूल्यों के स्मरण का भी दिन है।


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Shruty Kushwaha

Shruty Kushwaha

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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