महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने फैक्ट्रीज एक्ट 1948 में संशोधन को मंजूरी दी, जिसके तहत दैनिक कामकाजी घंटों को 9 से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया गया है। सरकार का कहना है कि इस कदम का उद्देश्य औद्योगिक लचीलापन बढ़ाना और श्रमिकों को बेहतर वित्तीय लाभ सुनिश्चित करना है। श्रम मंत्री आकाश फुंडकर ने कहा कि ये बदलाव पारदर्शिता को बढ़ाएंगे और उद्योग की जरूरतों के अनुरूप श्रमिकों को बेहतर मुआवजा देंगे। हालांकि, इस फैसले को लागू करने के लिए कारखानों को सरकार की मंजूरी लेनी होगी।
संशोधनों में कई महत्वपूर्ण बदलाव शामिल हैं। धारा 54 के तहत दैनिक काम के घंटे 12 तक बढ़ाए गए हैं, जबकि धारा 55 में 5 और 6 घंटे काम के बाद 30 मिनट का विश्राम अनिवार्य किया गया है। धारा 56 में साप्ताहिक काम की सीमा 48 से बढ़ाकर 60 घंटे की गई है और धारा 65 में ओवरटाइम की सीमा 115 से बढ़ाकर 144 घंटे कर दी गई है। ये नियम न केवल कारखानों, बल्कि दुकानों, आईटी और होटल जैसे निजी क्षेत्रों पर भी लागू होंगे। ओवरटाइम के लिए श्रमिकों की सहमति अनिवार्य होगी और साप्ताहिक कुल घंटे 60 से अधिक नहीं होंगे।
कदम का कड़ा विरोध
हालांकि, श्रमिक संगठनों ने इस कदम का कड़ा विरोध किया है। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के श्रमिक नेता अजीत अभयंकर ने इन संशोधनों को शोषणकारी करार दिया। उन्होंने तर्क दिया कि 12 घंटे की शिफ्ट का नियम तीन दिनों के ओवरटाइम वेतन को समाप्त कर देगा, जिससे श्रमिकों की आय कम हो जाएगी। उन्होंने चेतावनी दी कि नियोक्ता इस लचीलेपन का दुरुपयोग कर सकते हैं, जैसे कि कार्यभार बढ़ाकर या लागत प्रभावी रात की शिफ्ट में बदलाव करके, जो श्रमिकों के स्वास्थ्य और कल्याण को प्रभावित कर सकता है।
विधायी प्रक्रिया से गुजरेगा
इन संशोधनों को अब राष्ट्रपति की मंजूरी और विधायी प्रक्रिया से गुजरना होगा। सरकार ने आश्वासन दिया है कि किसी भी समूह के साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा। यह कदम औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने की दिशा में देखा जा रहा है, लेकिन श्रमिक संगठनों का विरोध इसे लागू करने में चुनौतियां खड़ी कर सकता है।





