सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिल्ली-एनसीआर में बढ़ती आवारा कुत्तों की समस्या को गंभीर मानते हुए दिल्ली सरकार और नगर निगमों को सभी इलाकों से इन कुत्तों को पकड़कर शेल्टर होम में रखने का आदेश दिया है। अदालत ने स्पष्ट चेतावनी दी कि अगर कोई व्यक्ति या समूह इस अभियान में बाधा डालेगा तो उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। यह आदेश ऐसे समय में आया है जब राजधानी में कुत्तों के हमलों की खबरें समय-समय पर चर्चा में रहती हैं। कोर्ट का मानना है कि यह कदम लोगों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए जरूरी है।
“न तो व्यावहारिक, न मानवीय”
पशु अधिकार कार्यकर्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने इस फैसले की तीखी आलोचना की है। उनका कहना है कि दिल्ली में लगभग तीन लाख आवारा कुत्ते हैं और इन्हें हटाने के लिए लगभग 3,000 शेल्टर पाउंड बनाने होंगे, जिनमें पानी, शेड, रसोई और चौकीदार की सुविधा उपलब्ध करानी होगी। उन्होंने अनुमान लगाया कि इस पूरी प्रक्रिया में करीब 15,000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। इतना ही नहीं, पकड़े गए कुत्तों के भोजन पर ही हर सप्ताह लगभग 5 करोड़ रुपये खर्च होंगे, जो आर्थिक दृष्टि से असंभव है। मेनका गांधी ने इस फैसले को इकोलॉजिकल बैलेंस के लिए भी खतरनाक बताया। उन्होंने कहा कि अगर कुत्ते नहीं रहेंगे तो 48 घंटों के भीतर बंदर सड़कों पर उतर आएंगे और यह स्थिति और खतरनाक हो सकती है। उन्होंने पेरिस का उदाहरण देते हुए कहा कि 1880 के दशक में जब वहां कुत्ते-बिल्लियों को हटाया गया, तो शहर चूहों से भर गया था।
“फर्जी खबर के आधार पर फैसला”
मेनका गांधी का आरोप है कि यह पूरा मामला एक झूठी खबर पर आधारित है। उन्होंने कहा कि एक लड़की की मौत को कुत्तों के हमले से जोड़कर पेश किया गया, जबकि असल में उसकी मौत मेनिन्जाइटिस से हुई थी। पूर्व मंत्री का कहना है कि सरकार के पास पहले से एक रोडमैप मौजूद था, जिससे दो साल में कुत्तों की संख्या और काटने की घटनाएं दोनों कम हो सकती थीं। इस योजना में कुत्तों की सख्त नसबंदी, रेबीज और डिस्टेंपर का टीकाकरण, कुत्तों को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने पर रोक, मान्यता प्राप्त संस्थाओं द्वारा एबीसी (Animal Birth Control) केंद्रों का संचालन शामिल है।
विरोध प्रदर्शन और सरकार की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विरोध में सोमवार को दिल्ली-एनसीआर के पशु प्रेमी, फीडर्स और बचावकर्ता इंडिया गेट पर इकट्ठा हुए। उनका कहना था कि आवारा कुत्तों को हटाना समाधान नहीं है। प्रदर्शनकारियों के अनुसार, मीडिया ने आवारा कुत्तों के काटने और रेबीज के मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2024 में केवल 54 संदिग्ध रेबीज मौतें हुईं। उन्होंने मांग की कि एबीसी नियमों का सख्ती से पालन किया जाए, नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्तों को उनके क्षेत्रों में वापस छोड़ा जाए, स्थानीय फीडर्स और देखभाल करने वालों को प्रक्रिया में शामिल किया जाए, विरोध के दौरान पुलिस ने कुछ प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया, लेकिन उन्होंने साफ किया कि यह लड़ाई लंबी चलेगी।
सरकार का रुख और आगे की राह
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने माना कि आवारा कुत्तों की समस्या बढ़ चुकी है और सरकार जल्द ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने के लिए एक स्पष्ट नीति बनाएगी। दिल्ली विकास मंत्री कपिल मिश्रा का कहना है कि यह कदम शहर को रेबीज और आवारा जानवरों के डर से मुक्त करेगा। हालांकि, मेनका गांधी और अन्य पशु अधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि अगर यह योजना लागू हुई, तो इससे न केवल आर्थिक बोझ बढ़ेगा, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन भी बिगड़ सकता है। दिल्ली में आवारा कुत्तों का मुद्दा अब कानूनी, आर्थिक, पर्यावरणीय और मानवीय चारों पहलुओं से बहस का विषय बन गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश और मेनका गांधी के विरोध ने इस पर देशभर का ध्यान खींचा है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और कोर्ट किस तरह का संतुलित समाधान निकालते हैं, ताकि न लोगों की सुरक्षा खतरे में पड़े और न ही शहर के जैविक संतुलन को नुकसान पहुंचे।





