एक तरफ भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव देखने को मिल रहा है, तो वहीं केंद्र सरकार ने देश के 244 जिलों में 7 मई को मॉक ड्रिल करने का ऐलान किया है, जिसमें नागरिकों को हमले के दौरान खुद को बचाने की ट्रेनिंग दी जाएगी। यदि युद्ध की स्थिति उत्पन्न होती है, तो लोगों को किस प्रकार से सुरक्षा सुनिश्चित करनी है, इसकी जानकारी दी जाएगी। लेकिन यह पहली बार नहीं है जब किसी देश ने मॉक ड्रिल का ऐलान किया है। इससे पहले भी कुछ देश मॉक ड्रिल कर चुके हैं। भारत भी इससे पहले मॉक ड्रिल करवा चुका है। दरअसल, भारत ने 1971 में पहली बार मॉक ड्रिल की थी।
चलिए, आज इस खबर में जानते हैं कि किन देशों ने युद्ध की स्थिति को देखते हुए मॉक ड्रिल की और मॉक ड्रिल के दौरान क्या-क्या किया गया। क्या मॉक ड्रिल की जाती है तो युद्ध की स्थिति या युद्ध होना निश्चित हो जाता है? आइए जानते हैं।

अमेरिका भी मॉक ड्रिल कर चुका है
अमेरिका ने 14 जून 1952 को परमाणु हमले की आशंका के बीच देश का पहला सिविल डिफेंस ड्रिल आयोजित किया था, जिसे ‘डक एंड कवर’ भी कहा गया था। इस दौरान स्कूलों और सार्वजनिक संस्थानों में अलर्ट का सायरन बजाया गया। बच्चों और नागरिकों को मेज के नीचे छुपकर डक करने और हथेली से सिर को ढकने का अभ्यास करवाया गया था। दरअसल, इस ड्रिल का मकसद परमाणु हमले की स्थिति में खुद को बचाना था।
कनाडा भी मॉक ड्रिल का अभ्यास कर चुका है
जानकारी दें कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 19 फरवरी 1942 को कनाडा के मैनिटोबा शहर में मॉक ड्रिल के तहत ‘इफ डे’ का आयोजन हुआ था। इस दौरान नकली नाजी हमले का नाटक किया गया था। शहर के मुख्य चौराहों पर वॉलंटियर सैनिक तैनात किए गए और इस दौरान राजद्रोह का आरोप लगाकर कुछ लोगों को अस्थायी कस्टडी में भी रखा गया था। पूरे शहर में सायरन बजाए गए और लाइटें बंद कर दी गईं ताकि नागरिकों को अंधेरे में सुरक्षित रहने की ट्रेनिंग दी जा सके।
ब्रिटेन ने 1980 में की थी मॉक ड्रिल
इतना ही नहीं, ब्रिटेन ने भी मॉक ड्रिल की प्रैक्टिस की थी। 1980 के दौरान 11 से 25 सितंबर के बीच देश में ‘स्क्वायर लेग’ नाम से फील्ड एक्सरसाइज का आयोजन किया गया था, जिसमें सरकार द्वारा यह कल्पना की गई थी कि 150 परमाणु बम दागे गए हैं और उसी अनुसार तैयारी की गई। पूरे देश में एयर-रेड सायरन भी बजाया गया ताकि लोग खतरे को समझ सकें और सतर्क हो सकें। इसके अलावा सभी गैर-ज़रूरी लाइटें बंद करवाई गईं, जिसे ‘ब्लैकआउट’ कहा जाता है, ताकि दुश्मन को निशाना लगाने में कठिनाई हो। इस दौरान ब्रिटेन ने यह परखा कि युद्ध की स्थिति में नागरिकों की सुरक्षा और आपात स्थिति से निपटने में देश कितना तैयार है।