दिल्ली के शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने विधानसभा के मॉनसून सत्र के पहले दिन निजी स्कूलों द्वारा शुल्क वृद्धि को विनियमित करने के लिए दिल्ली स्कूल शिक्षा पारदर्शिता शुल्क निर्धारण एवं विनियमन विधेयक, 2025 पेश किया। सूद ने दावा किया कि इस विधेयक को पेश करने से रोकने के लिए उन्हें और मुख्यमंत्री को धमकियां दी गईं। उन्होंने कहा कि रेखा गुप्ता के नेतृत्व वाली सरकार इस गंभीर मुद्दे को हल करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो पिछली सरकार से विरासत में मिला है।
शिक्षा मंत्री ने कहा कि निजी स्कूलों द्वारा हर साल की जाने वाली शुल्क वृद्धि से अभिभावक परेशान हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि शिक्षा माफिया और संबंधित लोगों ने विधेयक को रोकने के लिए दबाव बनाने की कोशिश की। सूद ने पिछली आम आदमी पार्टी (आप) सरकार पर निजी स्कूलों के साथ “छलपूर्ण व्यवहार” करने का भी आरोप लगाया।
विधेयक में शुल्क निर्धारण के लिए कई कारकों को ध्यान में रखने का प्रावधान है, जिनमें स्कूल का स्थान, बुनियादी ढांचा, शिक्षा की गुणवत्ता, प्रशासनिक लागत, कर्मचारियों का वेतन और अधिशेष निधि शामिल हैं। यह विधेयक शुल्क वृद्धि में पारदर्शिता और नियमन सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखता है। विपक्ष की नेता आतिशी ने मांग की कि विधेयक को सदन में विचार से पहले प्रवर समिति को भेजा जाए। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि शुल्क को 2024-25 के स्तर पर स्थिर रखा जाए ताकि स्कूलों द्वारा नई वृद्धि न की जाए। यह विधेयक दिल्ली में निजी स्कूलों की शुल्क नीतियों में सुधार लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
मनमानी फीस पर लगाम लगाएगा नया विधेयक
इस सत्र की सबसे अहम कड़ी है मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता द्वारा लाया जाने वाला “स्कूल फीस नियंत्रण विधेयक”। राजधानी दिल्ली में लंबे समय से निजी स्कूलों द्वारा मनमाने ढंग से फीस बढ़ाने की शिकायतें आ रही हैं। इस मुद्दे को लेकर अभिभावकों के बीच लगातार असंतोष बना हुआ है। रेखा गुप्ता सरकार अब इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए कानूनी प्रावधान लाने जा रही है, जिससे निजी स्कूलों पर फीस वृद्धि के लिए नियमन और पारदर्शिता लागू हो सके। विधेयक में यह प्रावधान हो सकता है कि स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले संबंधित सरकारी प्राधिकरण से अनुमति लेनी होगी। साथ ही स्कूलों को अपनी आय-व्यय का लेखा-जोखा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराना अनिवार्य किया जाएगा। इससे न केवल अभिभावकों को राहत मिलेगी, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में भी संतुलन आएगा।
विधानसभा में पेश होंगी दो अहम CAG रिपोर्टें
सत्र के दौरान मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता दो महत्वपूर्ण CAG (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) रिपोर्टें भी सदन में पेश करेंगी। पहली रिपोर्ट वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान दिल्ली सरकार की आमदनी और खर्च की स्थिति पर आधारित है। दूसरी रिपोर्ट 31 मार्च 2023 को समाप्त वर्ष में निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए खर्च की गई राशि की लेखा परीक्षा पर केंद्रित है। इन दोनों रिपोर्टों की खास बात यह है कि ये उस वक्त की हैं जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार सत्ता में थी। ऐसे में बीजेपी सरकार के लिए ये रिपोर्टें पूर्ववर्ती सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने का एक बड़ा आधार बन सकती हैं। रेखा गुप्ता सरकार पहले भी AAP पर वित्तीय गड़बड़ियों और फंड के दुरुपयोग के आरोप लगा चुकी है, और अब इन रिपोर्टों के आधार पर वह सदन में विपक्ष को घेरने की तैयारी में है।
बीजेपी की रणनीति पर सबकी निगाहें
जैसे ही ये रिपोर्टें सदन में पेश होंगी, इस बात की संभावना है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) के विधायक AAP को निशाने पर लेंगे। रिपोर्ट्स में अगर किसी भी तरह की अनियमितता या खर्च में पारदर्शिता की कमी सामने आती है, तो यह AAP की साख के लिए बड़ा झटका होगा। वहीं, AAP के विधायक भी पूरी तैयारी में हैं कि वे अपने कार्यकाल की उपलब्धियों का हवाला देकर इन आरोपों का जवाब दें। विपक्ष का कहना है कि यह रिपोर्टें राजनीतिक द्वेष के तहत इस्तेमाल की जा रही हैं और वास्तविक आंकड़ों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। विशेष रूप से यह देखने लायक होगा कि निर्माण श्रमिकों के कल्याण फंड से जुड़ी रिपोर्ट क्या दर्शाती है और उसमें क्या ऐसी बातें हैं जो सरकार के दावों को बल देती हैं या विपक्ष को राहत देती हैं।
नीतिगत बहस और पारदर्शिता
इस बार का मानसून सत्र न केवल तकनीकी दृष्टि से खास है बल्कि इसकी विधायी और लेखा परीक्षा संबंधी महत्ता भी काफी अधिक है। स्कूल फीस नियंत्रण विधेयक का आम जनता से सीधा जुड़ाव है, जबकि CAG रिपोर्टें सरकार की वित्तीय पारदर्शिता और जिम्मेदारी को लेकर गंभीर सवाल उठा सकती हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि रेखा गुप्ता सरकार इस सत्र में किस प्रकार नीतिगत सुधारों को आगे बढ़ाती है और किस हद तक विपक्ष को जवाबदेह बनाती है।





