नई दिल्ली: संसद का मानसून सत्र अपने शुरुआती दो दिन विवाद और हंगामे की भेंट चढ़ गया। सोमवार को सत्र की शुरुआत के साथ ही विपक्ष ने जोरदार प्रदर्शन किया, और मंगलवार को भी यही सिलसिला जारी रहा। लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी और अब यह 23 जुलाई (बुधवार) तक टाल दी गई है। दो दिनों तक सदन में सिर्फ हंगामा होते रहा। पहले दिन भी सदन तीन बार स्थगित हुआ। मंगलवार को भी राज्यसभा और लोकसभा तीन बार स्थगित हुआ।
विपक्ष का जोरदार हंगामा
सत्र की शुरुआत होते ही विपक्षी सांसदों ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा की मांग को लेकर सदन में नारेबाजी शुरू कर दी। तख्तियां लहराते हुए विपक्षी सांसदों ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा से बच रही है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भी आरोप लगाया कि उन्हें सदन में बोलने नहीं दिया जा रहा है, जबकि यह उनका संवैधानिक अधिकार है।
तीन बार चली कार्यवाही
मंगलवार को तीन बार संसद की कार्यवाही शुरू करने की कोशिश की गई। पहली बार सुबह 11 बजे कार्यवाही शुरू हुई, लेकिन कुछ ही मिनटों में विपक्ष के शोरशराबे के चलते स्थगित करनी पड़ी। दूसरी बार 12 बजे फिर कार्यवाही शुरू हुई, पर हालात नहीं बदले। तीसरी बार दोपहर 2 बजे कार्यवाही शुरू हुई, लेकिन विपक्ष के तेवर पहले जैसे ही आक्रामक रहे, और कार्यवाही को 23 जुलाई तक स्थगित कर दिया गया।
उपराष्ट्रपति के इस्तीफे की अटकलों ने बढ़ाई हलचल
सोमवार शाम को एक और बड़ी खबर सामने आई जिसने राजनीतिक हलचल को और बढ़ा दिया। खबर आई कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दिया है, हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि देर रात तक नहीं हो सकी थी। इससे राज्यसभा में संभावित सियासी समीकरणों और विपक्ष की रणनीति को लेकर नए कयास लगने शुरू हो गए हैं।
25 घंटे चर्चा का तय हुआ था वक्त
सरकार ने पहले ही घोषणा की थी कि ऑपरेशन सिंदूर पर लोकसभा में 16 घंटे और राज्यसभा में 9 घंटे चर्चा की जाएगी। इसके अलावा इनकम टैक्स बिल, नेशनल स्पोर्ट्स बिल और मणिपुर बजट जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर भी बहस की योजना थी। लेकिन दो दिन में सदन में कोई गंभीर चर्चा नहीं हो सकी और जनता से जुड़े मुद्दों पर कोई प्रगति नहीं हुई।
संसद का यह मानसून सत्र विजयोत्सव के रूप में देखा जा रहा था, लेकिन शुरुआती दो दिनों में कोई सकारात्मक कार्य नहीं हो सका। यदि यह स्थिति बनी रही, तो न सिर्फ कानून निर्माण प्रभावित होगा बल्कि जनता का विश्वास भी संसदीय प्रक्रिया से डगमगाएगा। अब सभी की नजर बुधवार के सत्र पर है, जहां उम्मीद है कि कुछ गंभीर विमर्श देखने को मिलेगा।





