Uttarakhand Tourism: जानें कहां विराजित है पंचकेदार, एक तो है दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर
उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से पहचाना जाता है क्योंकि यहां के कण-कण में देवताओं का वास है। यहां पर केदारनाथ तो विराजित हैं लेकिन पंचकेदार भी यहां पर निवास करते हैं। अगर आप उत्तराखंड टूरिज्म (Uttarakhand Tourism) का प्लान बना रहे हैं तो यहां मौजूद अन्य शिवालय जाना बिल्कुल ना भूलें।
Uttarakhand Tourism: भगवान भोलेनाथ की जब भी बात आती है तो देव भूमि उत्तराखंड का नाम अनायास ही सभी के मन में आ जाता है। आए भी क्यों ना हिमालय की गोद में मौजूद इस जगह को भगवान शिव का प्रिय स्थान कहा जाता है। कहा जाता है कि इस जगह के हर कोने में देवता विराजत है और चार धाम में से एक बाबा केदारनाथ मंदिर भी यही मौजूद है। ज्यादा लोगों को इस बारे में जानकारी नहीं है लेकिन केदारनाथ के अलावा यहां पर अन्य शिवालय भी मौजूद है जिनकी गणना पंचकेदार में की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के इन प्रमुख केंद्रों पर भगवान शिव के अलग-अलग अंगों की पूजा होती है जो मिलकर पंच केदार कहलाते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक नेपाल के पशुपतिनाथ और उत्तराखंड के पंच केदार की यात्रा के बाद है द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ की पूजा को पूर्णता प्राप्त होती है। आज हम आपको पंच केदार से जुड़ी पौराणिक कथा और धार्मिक मान्यता के बारे में जानकारी देते हैं।
पंच केदार 5 शिव मंदिरों का सामूहिक नाम है जिसका वर्णन स्कंद पुराण में भी किया गया है। केदार में सबसे पहला नंबर केदारनाथ का है, दूसरा मदहेश्वर, तीसरा तुंगनाथ, चौथा रुद्रनाथ और पांचवा केदार कल्पेश्वर महादेव को बोला गया है।
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ऐसे बसे केदारनाथ
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान कृष्ण ने पांडवों को अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए भोले शंकर का आशीर्वाद पाने की सलाह दी थी। भगवान शिव उनसे बहुत नाराज थे और उन्हें दोष से मुक्ति नहीं देना चाहते थे। शंकर जी पांडवों से बचकर हिमालय की और पहुंचे तो वह भी उत्तराखंड पहुंच गए। यह देखकर भोलेनाथ ने बैल का रूप धारण किया। पांडवों को समझ आ गया कि इनमें शिवजी भी शामिल है तभी भीम ने अपना विशालकाय रूप धारण किया सभी बैल उनके पैरों के नीचे से गुजर गए लेकिन शरीर रूपी बैल जाने को तैयार नहीं था।
यह देखकर भीम ने झपट्टा मारकर उन्हें पकड़ने की कोशिश की तो भोलेनाथ ने जमीन में गड्ढा किया और विलुप्त होने लगे। तभी उनकी त्रिकोण आकार की पीठ भीम के हाथों में आ गई और आज उसी आकृति की केदारनाथ पिंड के रूप में पूजा की जाती है।
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मदमहेश्वर
भगवान शिव के बैल रूपी अवतार की नाभि को इस जगह पर पूजा जाता है। यह मंदिर चारों तरफ से विशाल पर्वतों से घिरा हुआ है और इसकी सुंदरता देखने लायक है। इस मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया पर खुलते हैं और दिवाली के बाद सर्दियों के समय इसे बंद कर दिया जाता है।
दुनिया का सबसे ऊंचा महादेव मंदिर
तीसरे केदार के रूप में विराजित तुंगनाथ में भोलेनाथ की भुजा की आराधना की जाती है। इस मंदिर की कई खासियत है और ये दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है। ये समुद्रतल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद है। धार्मिक जगह होने के साथ यह स्थान एडवेंचर पसंद करने वाले लोगों के लिए भी जानी जाती है। सर्दियों में 6 महीने इस मंदिर के कपाट बंद रहते हैं।
रुद्रनाथ
रुद्रनाथ चमोली जिले में बसे हुए हैं और चौथे केदार के रूप में पूजे जाते हैं। 3554 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद यह मंदिर प्राकृतिक नजारों से भरपूर है। यहां पर भगवान शिव के मुख्य की पूजा की जाती है। सर्दियों में मंदिर के कपाट बंद होते हैं और रुद्रनाथ को गोपेश्वर में पूजा जाता है।
कल्पेश्वर
पांचवें केदार के रूप में विख्यात कल्पेश्वर महादेव में भगवान शिव की जटाओं की पूजा की जाती है। यह एकमात्र ऐसी जगह है जहां साल भर श्रद्धालुओं दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। सर्दियों के मौसम में भी मंदिर के कपाट खुले रहते हैं और श्रद्धालु यहां पर दर्शन करने के लिए आते हैं। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस जगह पर एक कल्पवृक्ष मौजूद है जिसके नीचे बैठकर ऋषि दुर्वासा ने घोर तपस्या की थी। यह मंदिर चमोली जिले की और उर्गम घाटी में मौजूद हैं जहां तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 10 किलोमीटर पैदल रास्ता तय करना होता है। इस रास्ते में कई सारे प्राकृतिक नजारे अद्भुत अनुभव का एहसास करवाते हैं।