भारतीय राजनीति हमेशा से इतिहास से भरपूर रही है। बड़े-बड़े नेता भारतीय राजनीति के इतिहास में रहे हैं। कई बार इस राजनीति में उठा-पटक का दौर देखने को मिला है, चाहे वह प्रधानमंत्री पद के लिए हो, मुख्यमंत्री के लिए हो, राज्यपाल के लिए हो या फिर छोटे से छोटे पार्षद के चुनाव में भी। फेरबदल की राजनीति हमेशा चर्चा में रही है। मध्य प्रदेश की राजनीति का इतिहास भी इन्हीं उठा-पटक के दौर से गुजरा है। बेहद कम लोग यह जानते हैं कि मध्य प्रदेश की राजनीति में ऐसा भी हुआ है कि किसी नेता को एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनाया गया हो और अगले ही दिन उसे दूसरे राज्य का राज्यपाल बना दिया गया हो। यह सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन यह पूरी तरह सत्य है।
80 के दशक में मध्य प्रदेश की राजनीति में ऐसी उठापटक देखने को मिली थी। 1980 में अर्जुन सिंह ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। 1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 246 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जब सरकार बनाने का मौका आया, तो विधायक दल और केंद्रीय नेतृत्व के बीच चर्चाएं शुरू हो गईं।
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सीएम पद के लिए जोड़-तोड़ शुरू की गई
लेकिन कांग्रेस के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा चुनना आसान नहीं रहा। दरअसल, चुनाव के बाद जब सीएम पद के लिए जोड़-तोड़ शुरू हुई, तो प्रणब मुखर्जी को दिल्ली से मध्य प्रदेश का पर्यवेक्षक बनाकर भेजा गया। उस समय मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शिवभानु सिंह सोलंकी का नाम भी शामिल था। प्रणब मुखर्जी के पर्यवेक्षक होने के बावजूद भी मध्य प्रदेश में एकमत नहीं बन पाया, जिसके चलते मुख्यमंत्री का चयन नहीं हो सका। बाद में संजय गांधी के कहने पर अर्जुन सिंह को विधायक दल का नेता चुना गया।
आत्मकथा में अर्जुन सिंह ने किया जिक्र
इस पूरी घटना का जिक्र अर्जुन सिंह ने अपनी आत्मकथा में किया है। उन्होंने लिखा कि “जब वे प्रधानमंत्री आवास पहुंचे, तो उन्हें जानकारी मिली कि राजीव गांधी मुख्य कक्ष में हैं। वहां पहुंचने से पहले वे बाहर के चेंबर में गए, जहां माखनलाल फोतेदार बैठे हुए थे। अर्जुन सिंह ने अपनी आत्मकथा में बताया कि जहां माखनलाल फोतेदार बैठे थे, वहीं अरुण नेहरू को भी उन्होंने देखा। यह देखकर वे बेहद आश्चर्यचकित रह गए। जब वे राजीव गांधी के पास पहुंचे, तो राजीव गांधी कुर्सी के पास खड़े थे। अर्जुन सिंह के अभिवादन के तत्काल बाद ही राजीव गांधी ने उनका हाथ पकड़ते हुए पंजाब का राज्यपाल बनने की बात कही। राजीव गांधी ने उनसे पूछा कि क्या उन्हें किसी और से इस बारे में बात करनी है? अर्जुन सिंह ने जवाब दिया कि नहीं, वे इसके लिए पूरी तरह तैयार हैं। राजीव गांधी ने अर्जुन सिंह को मध्य प्रदेश में अपनी पसंद का मुख्यमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष चुनने की बात कही और 14 मार्च को पंजाब जाने का निर्देश दिया।”
क्या अर्जुन सिंह ने भी राजीव गांधी के सामने शर्त रखी थी?
दरअसल, इस दौरान अर्जुन सिंह ने भी राजीव गांधी के सामने एक शर्त रखी थी। अर्जुन सिंह का कहना था कि वे पंजाब के मामले में सिर्फ राजीव गांधी से ही बात करेंगे। विशेषज्ञों की मानें तो राजीव गांधी ने पहले ही अर्जुन सिंह को बड़ी जिम्मेदारी देने के संकेत दे दिए थे। कांग्रेस विधायक दल के नेता का चुनाव होने से ठीक 6 दिन पहले राजीव गांधी कान्हा नेशनल पार्क पहुंचे थे। जब वे दिल्ली लौट रहे थे, तो उन्होंने भोपाल हवाई अड्डे पर अर्जुन सिंह से कुछ देर अकेले में बातचीत भी की थी। दावा किया जाता है कि उसी दौरान ही राजीव गांधी ने अर्जुन सिंह को बड़ी जिम्मेदारी देने की बात कही होगी। लेकिन अर्जुन सिंह ने यह भी शर्त रखी होगी कि पहले उन्हें विधायकों का नेता चुना जाए और मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने दी जाए। अगर उन्हें पहले ही राज्यपाल बना दिया जाता, तो प्रदेश में यह संकेत जाता कि अर्जुन सिंह को राजनीति से हटा दिया गया है।