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Wed, Dec 17, 2025

भारत का इकलौता मंदिर जहां खुद का श्राद्ध करते हैं लोग, जानें अनोखी परंपरा का रहस्य!

Written by:Sanjucta Pandit
Published:
सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है, जो 15 दिन तक चलता है और सर्वपितृ अमावस्या पर समाप्त होता है। इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध व पिंडदान किया जाता है।
भारत का इकलौता मंदिर जहां खुद का श्राद्ध करते हैं लोग, जानें अनोखी परंपरा का रहस्य!

सनातन धर्म में पितृ पक्ष का बहुत ही ज्यादा महत्व है, इस दौरान भारत में पितरों की पूजा की जाती है। यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष से प्रारंभ होता है, जो कि 15 दिनों तक चलता है। इस दौरान कुछ स्थानों पर पिंडदान के लिए लोग पहुंचते हैं। बता दें कि पितृ पक्ष के दौरान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए लोग श्रद्धा और दान करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितृ धरती लोक पर आते हैं और सभी कष्टों को दूर करते हैं। इन दिनों कुछ खास नियम कानून का पालन करना पड़ता है, जिससे उनके पितरों की आत्मा को शांति मिल सके।

इस दौरान सर्व पितृ अमावस्या का काफी अधिक महत्व है। इस खास मौके पर बहुत सारी बातों का ध्यान रखना पड़ता है। पितृपक्ष का समापन सर्व पितृ अमावस्या के दिन ही होगा।

पितृ पक्ष शुरू

वैदिक पंचांग के अनुसार, आज से यह शुरू हो चुकी है, जिसका समापन 7 सितंबर को ही रात 11:38 पर होगा। ऐसे में रविवार के दिन ही पितृ पक्ष की शुरुआत होगी और इसकी समाप्ति पितृ अमावस्या यानी 21 सितंबर को होगी।

भारत का इकलौता मंदिर

ऐसे में आज हम आपको बिहार में स्थित गया शहर के बारे में बताएंगे, जिसका नाम सुनते ही सबसे पहले पिंडदान की परंपरा दिमाग में आती है। कहते हैं यहां श्राद्ध करने के बाद पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और इंसान पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है। हर साल हजारों लोग इस मान्यता को पूरी करने के लिए गया पहुंचते हैं। यहां एक मंदिर ऐसा है, जिसके बारे में सुनकर लोग दंग रह जाते हैं। एक मंदिर ऐसा भी है, जिसके बारे में सुनकर लोग दंग रह जाते हैं। मंदिर का नाम है जनार्दन वेदी मंदिर। खासियत यह है कि यहां लोग अपने पूर्वजों का नहीं, बल्कि अपना ही श्राद्ध करते हैं।

जनार्दन वेदी मंदिर

जी हां! बिल्कुल सही सुना आपने… दरअसल, इस मंदिर का नाम जनार्दन वेदी मंदिर है। गया में कुल 54 वेदियां बताई जाती हैं, जहां पिंडदान होता है। मगर जनार्दन वेदी अकेली ऐसी जगह है, जहां लोग जीते-जी आत्म पिंडदान करते हैं। यह वेदी भस्मकूट पर्वत पर, मंगला गौरी मंदिर के उत्तरी हिस्से में है। मान्यता है कि यहां खुद भगवान विष्णु जनार्दन स्वरूप में पिंड ग्रहण करते हैं।

अनोखी परंपरा

अब सवाल यह उठता है कि भला कोई जीते जी अपना ही श्राद्ध क्यों करेगा? तो बता दें कि मान्यताओं के अनुसार, जिन लोगों की संतान नहीं होती या जिनके परिवार में आगे उनका श्राद्ध करने वाला कोई नहीं होता, वो यहां आकर खुद ही अपना पिंडदान कर लेते हैं। इसके अलावा, जो लोग गृहस्थी छोड़कर वैराग्य के रास्ते पर निकल जाते हैं, वे भी यहां आत्मश्राद्ध करते हैं। उनका मानना है कि जब दुनिया से मोह-माया छोड़ दी, तो जीते जी यह कर्मकांड पूरा कर लेना चाहिए।

पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, कहा जाता है कि फल्गु नदी के किनारे भगवान राम ने अपने भाइयों के साथ मिलकर पिता दशरथ का पिंडदान किया था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। तभी तो आज भी लोग मानते हैं कि गया में पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को मोक्ष मिलता है। आत्म पिंडदान करके इंसान यह मान लेता है कि एक दिन उसे भी इस चक्र से गुजरना है।

(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।)