भारतीय राजनीति में ऐसी कई घटनाएं घटी हैं जो चौंकाने वाली रही हैं। ऐसी ही एक घटना आज़ादी के बाद घटी, जब देश में पहली बार केंद्र सरकार का गठन हुआ था। इस घटना ने राजनीतिक इतिहास को पलट कर रख दिया। भारतीय राजनीति के दौर में एक ऐसा भी समय आया जब प्रधानमंत्री ने अपनी ही बहन को मंत्री बनने से मना कर दिया। चलिए जानते हैं, आखिर राजनीति में ऐसा कब हुआ।
यह घटना उस समय की है जब देश में आज़ादी के बाद पहली बार केंद्र सरकार का गठन हो रहा था। सभी की नज़रें उस समय के सबसे प्रभावशाली नेताओं पर थीं, जिनमें से एक थीं विजयलक्ष्मी पंडित। बता दें कि आज़ादी के बाद जब देश में केंद्र सरकार का गठन हो रहा था, उस समय विजयलक्ष्मी पंडित एक बड़ा नाम थीं और उनके नाम की चर्चा ज़ोरों पर थी।

कौन थीं विजयलक्ष्मी पंडित?
दरअसल, विजयलक्ष्मी पंडित देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सगी बहन थीं। वे न सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख नेता थीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत का एक बड़ा चेहरा मानी जाती थीं। ऐसे में जब देश में केंद्र सरकार का गठन हो रहा था और पहली केंद्रीय कैबिनेट बन रही थी, तो विजयलक्ष्मी पंडित का नाम चर्चा में था। सभी को लगा कि उन्हें मंत्री ज़रूर बनाया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
कब और कहां हुई यह घटना?
यह घटना 1947 से 1948 के बीच की है, जब आज़ाद भारत में पहली बार मंत्रिमंडल का गठन किया जा रहा था। इस दौरान राजनीति में विजयलक्ष्मी पंडित का नाम सबसे पहले आया था, लेकिन इसे लेकर खुद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा—”मैं उसे मंत्री नहीं बना सकता क्योंकि वह मेरी बहन है। अगर मैंने ऐसा किया तो लोग कहेंगे कि मैं परिवारवाद कर रहा हूं। नैतिक दृष्टि से यह सही नहीं होगा।” दरअसल, प्रधानमंत्री नेहरू के इस फैसले से पूरा देश हैरान था।
क्या विजयलक्ष्मी पंडित ने नाराजगी जताई?
अगर आपके मन में अब यह चल रहा है कि इसके बाद विजयलक्ष्मी पंडित ने नाराजगी जताई होगी, तो आप गलत हैं। दरअसल, इसके बाद भी विजयलक्ष्मी पंडित की ओर से कोई नाराज़गी नहीं जताई गई। उन्होंने कभी भी इस फैसले पर सार्वजनिक बयान नहीं दिया। इसके बजाय उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर किया और वे संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष बनने वाली पहली महिला भी बनीं।