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Sun, Dec 7, 2025

पुतिन का भारत दौरा: 2030 तक 100 अरब डॉलर व्यापार का लक्ष्य, ऊर्जा-रक्षा समेत 16 अहम समझौते, पढ़ें अहम बातें

Written by:Banshika Sharma
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दो दिवसीय भारत यात्रा में द्विपक्षीय संबंधों को नई दिशा दी गई है। दोनों देशों ने 2030 तक व्यापार 100 अरब डॉलर पहुंचाने का लक्ष्य रखा और ऊर्जा, रक्षा व परमाणु सहयोग समेत 16 समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इस दौरे ने भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का भी स्पष्ट संदेश दिया।
पुतिन का भारत दौरा: 2030 तक 100 अरब डॉलर व्यापार का लक्ष्य, ऊर्जा-रक्षा समेत 16 अहम समझौते, पढ़ें अहम बातें

नई दिल्ली: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दो दिवसीय भारत यात्रा ने भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी के 25 साल पूरे होने पर द्विपक्षीय संबंधों को एक नई ऊंचाई दी है। 23वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों देशों ने न केवल मौजूदा सहयोग को मजबूत किया, बल्कि अगले दशक के लिए एक महत्वाकांक्षी रोडमैप भी तैयार किया। इस यात्रा का सबसे बड़ा परिणाम 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य और ऊर्जा, रक्षा, परमाणु ऊर्जा सहित 16 महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर करना रहा।

यह यात्रा ऐसे समय में हुई है जब वैश्विक ग्लोबल जिओ पॉलिटिकल सिनेरियो में बड़े बदलाव हो रहे हैं। नई दिल्ली में पुतिन के भव्य स्वागत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी विस्तृत बातचीत हुई, जिसमें दोनों देशों ने अपनी दोस्ती को अटूट और स्थिर बताया।

“भारत-रूस संबंध ‘ध्रुव तारे’ की तरह हैं, जो वैश्विक उतार-चढ़ाव के बीच हमेशा स्थिर और भरोसेमंद रहे हैं।” — प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

2030 तक 100 अरब डॉलर का व्यापार लक्ष्य

इस शिखर वार्ता की सबसे बड़ी आर्थिक घोषणा ‘प्रोग्राम 2030’ के तहत bi lateral व्यापार को मौजूदा 69 अरब डॉलर से बढ़ाकर 2030 तक 100 अरब डॉलर तक ले जाने का संकल्प है। ट्रेड इंबैलेंस को कम करने के लिए रूस ने भारत से आयात बढ़ाने का आश्वासन दिया है। इस कार्यक्रम में मैन्युफैक्चरिंग, कृषि, उर्वरक, खनिज और शिपिंग जैसे क्षेत्रों में सहयोग को प्राथमिकता दी जाएगी।

इसके अलावा, यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (EAEU) के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में तेजी लाने पर भी सहमति बनी। यह समझौता भारतीय एक्सपोर्टर्स के लिए रूस, कजाकिस्तान और बेलारूस जैसे बाजारों के दरवाजे खोल देगा।

ऊर्जा और परमाणु सहयोग: भरोसे की नई इबारत

ऊर्जा सुरक्षा भारत के लिए इस वार्ता का एक प्रमुख केंद्र बिंदु रही। राष्ट्रपति पुतिन ने स्पष्ट किया कि रूस किसी भी बाहरी दबाव के बावजूद भारत को तेल, गैस और कोयले की निर्बाध आपूर्ति जारी रखेगा। यह आश्वासन भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि रियायती रूसी कच्चे तेल ने देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों को स्थिर रखने में मदद की है।

परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में, तमिलनाडु के कुडनकुलम न्यूक्लियर पावर प्लांट की शेष इकाइयों के निर्माण में तेजी लाने पर चर्चा हुई। रूस ने तीसरी यूनिट के लिए परमाणु ईंधन की पहली खेप भेज दी है। साथ ही, एक नए रूसी-डिजाइन परमाणु संयंत्र के लिए साइट चयन और छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) पर तकनीकी सहयोग बढ़ाने का भी निर्णय लिया गया।

रक्षा साझेदारी: ‘मेक इन इंडिया’ पर नया जोर

दशकों पुराने रक्षा संबंधों को अब एक नए मॉडल की ओर ले जाया जा रहा है। भविष्य में रक्षा सहयोग ‘मेक इन इंडिया’ और को प्रोडक्शन पर आधारित होगा, जिसमें रूसी तकनीक की मदद से भारत में ही रक्षा उपकरणों का निर्माण किया जाएगा। इसके अलावा, मौजूदा रूसी हथियार प्रणालियों के रखरखाव, मरम्मत और ओवरहॉल (MRO) के लिए भारत में सुविधाएं स्थापित करने पर भी जोर दिया गया ताकि उनकी ऑपरेशनल क्षमता बनी रहे।

कनेक्टिविटी से कृषि तक, सहयोग के नए क्षेत्र

इस यात्रा में सहयोग के नए क्षेत्रों पर भी ध्यान केंद्रित किया गया। कृषि व्यापार को मौजूदा 3.5 अरब डॉलर से दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है। उर्वरक आपूर्ति, खाद्य सुरक्षा और बीज अनुसंधान पर भी अहम सहमति बनी।

कनेक्टिविटी के मोर्चे पर, International North-South Transport Corridor (INSTC), रूसी फार ईस्ट और आर्कटिक क्षेत्र में भारत की भागीदारी बढ़ाने पर दोनों देश सहमत हुए। इसके अतिरिक्त, रूस ने भारत की पहल पर बने अंतर्राष्ट्रीय बिग कैट एलायंस में शामिल होने का फैसला किया है। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भारत रूसी नागरिकों को 30 दिनों का मुफ्त ई-टूरिस्ट वीजा और समूह पर्यटक वीजा भी प्रदान करेगा।

कूटनीतिक संदेश: स्वतंत्र और स्थिर विदेश नीति

यूक्रेन संघर्ष और पश्चिमी देशों के साथ रूस के तनावपूर्ण संबंधों के बीच पुतिन की यह यात्रा भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का एक मजबूत प्रतीक है। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर निर्णय लेता है, न कि किसी बाहरी दबाव में। इस शिखर सम्मेलन ने यह साबित कर दिया है कि भारत-रूस संबंध आने वाले दशक में भी वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्तंभ बने रहेंगे।