इस समय सबसे ज्यादा चर्चा भारतीय करेंसी को लेकर हो रही है। भारतीय करेंसी रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार गिरावट दर्ज कर रहा है और ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच चुका है, जिससे रुपए पर दबाव बढ़ गया है। सितंबर तिमाही में शानदार जीडीपी ग्रोथ के बावजूद भारतीय रुपए में लगातार गिरावट देखी गई। डॉलर के मुकाबले रुपया 90 के लेवल को भी पार कर गया और अपने ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया। 2025 में रुपए ने कई बड़े रिकॉर्ड तोड़े। डॉलर के मुकाबले रुपए में 4.9 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली। इस गिरावट के साथ ही दुनिया की 31वीं सबसे बड़ी करेंसी रुपया तीसरा सबसे खराब परफॉर्मर बन गया।
इसके पीछे कई कारण सामने आए हैं। दरअसल भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील में देखी जा रही देरी को सबसे बड़ा कारण माना गया है। इसके अलावा भारत के उत्पादों पर अमेरिका द्वारा लगाया गया 50% टैरिफ और विदेशी निवेशकों की बिकवाली भी इसका एक कारण है। ऐसे में रुपए पर लगातार दबाव बढ़ गया है।
RBI की इसपर नजर
इसी वजह से सभी की निगाहें RBI पर टिकी हुई हैं। रुपए की गिरावट के दौर में RBI क्या निर्णय ले रहा है, यह सभी जानना चाहते हैं। दरअसल ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट माने तो RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा इस समय करेंसी स्पेक्युलेशन को सुलझाने में लगे हुए हैं। इसके साथ ही पिछले साल अपने पूर्व गवर्नर द्वारा इस्तेमाल किए गए एग्रेसिव इंटरवेंशन टैक्टिक्स से बचने का प्रयास कर रहे हैं। कम इंटरवेंशन एक तरफ ट्रेडिंग को बढ़ावा दे सकता है, जिससे और गिरावट बढ़ सकती है। अगर रुपए को तेजी में लाना है तो ट्रेडिंग को दो तरफा करना होगा।
रोजाना हो रही है मीटिंग
रिपोर्ट की माने तो मार्केट खुलने से पहले हर रोज RBI के साउथ मुंबई हेडक्वार्टर में इंटरवेंशन स्ट्रैटेजी पर चर्चा की जाती है। फाइनेंशियल मार्केट कमेटी एक्सचेंज रेट के दबाव का मूल्यांकन करती है। यह मीटिंग हर रोज होती है और कई बार दबाव बढ़ने पर दिन में कई बार भी मीटिंग होती है। हालांकि आखिरी अधिकार गवर्नर के पास होता है। जब मीटिंग का कोई निर्णय निकलता है तो उसे बड़े सरकारी बैंकों के सीनियर डीलरों को भेजा जाता है।
RBI ने लिया यह निर्णय
रुपए में हो रही लगातार गिरावट के बीच आरबीआई द्वारा भी एक बड़ा फैसला लिया गया है। रिपोर्ट की माने तो रिजर्व बैंक ने 16 दिसंबर को 45,000 करोड़ रुपए की डॉलर रुपया बाय सेल स्वैप नीलामी रखने का ऐलान किया है। इस नीलामी की अवधि 36 महीने या 3 साल के लिए होगी। इस नीलामी में बैंक आरबीआई को डॉलर भेजेंगे और बदले में उन्हें रिजर्व बैंक की ओर से रुपया मिलेगा। आरबीआई का मकसद इसके जरिए बैंकिंग सिस्टम में लगभग 45,000 करोड़ रुपए की लिक्विडिटी डालना है, जिससे ओवरनाइट इंस्ट्रूमेंट पर दबाव कम हो जाएगा और रेपो रेट में हाल ही में की गई कटौती को और बेहतर तरीके से लागू किया जा सकेगा। इससे बाजार में रुपए की उपलब्धता बढ़ेगी, जिससे रुपए पर दबाव भी कम होगा।





