राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर, महाराष्ट्र में की थी। इसका मुख्य उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित कर राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक गौरव को बढ़ावा देना था। हेडगेवार, जो स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे, ने हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा को मजबूत करने के लिए इस संगठन की नींव रखी। उन्होंने हिंदू संस्कृति और इतिहास पर आधारित ‘शाखा’ प्रणाली शुरू की, जिसमें स्वयंसेवकों को शारीरिक और वैचारिक प्रशिक्षण दिया जाता था। शुरुआत में केवल पांच स्वयंसेवकों के साथ शुरू हुआ यह संगठन आज दुनिया के सबसे बड़े स्वैच्छिक संगठनों में से एक है, जिसकी शाखाएं भारत और विदेशों में फैली हुई हैं।
आरएसएस का इतिहास कई उतार-चढ़ावों से भरा रहा है। संगठन को चार बार प्रतिबंध का सामना करना पड़ा—1947 में चार दिनों के लिए, 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद, 1975 में आपातकाल के दौरान और 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद। गांधी की हत्या में आरएसएस के पूर्व सदस्य नाथूराम गोडसे की संलिप्तता के कारण संगठन को कठोर आलोचना का सामना करना पड़ा, हालांकि आरएसएस ने दावा किया कि गोडसे ने हत्या के समय संगठन छोड़ दिया था। इसके बावजूद, संगठन ने सामाजिक सेवा, शिक्षा और आपदा राहत जैसे क्षेत्रों में सक्रियता से काम किया, जिससे इसकी लोकप्रियता बढ़ी। 1951 में, आरएसएस के समर्थन से श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के रूप में उभरी।
हिंदुत्व की विचारधारा को बढ़ावा
आरएसएस ने हिंदुत्व की विचारधारा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1980 के दशक में, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए अभियान ने संगठन को राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में लाया। 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद हुए दंगों ने आरएसएस की छवि को प्रभावित किया, लेकिन संगठन ने इसे सामाजिक एकता के लिए अपने प्रयासों का हिस्सा बताया। इसके अलावा, आरएसएस ने सामाजिक सद्भाव और पंच परिवर्तन (पांच परिवर्तनों) जैसे सामाजिक उत्थान के कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित किया है। वर्तमान में, देश भर में 58,964 मंडल और 44,055 बस्तियों में इसके कार्य चल रहे हैं, जो सामाजिक सद्भाव बैठकों और हिंदू सम्मेलनों के माध्यम से समाज को जोड़ने का काम करते हैं।
आरएसएस अपनी शताब्दी मना रहा
2025 में आरएसएस अपनी शताब्दी मना रहा है और इस अवसर पर संगठन के प्रमुख मोहन भागवत ने दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला शुरू की, जिसमें “100 वर्षों की संघ यात्रा: नए क्षितिज” थीम पर चर्चा की गई। आरएसएस ने हमेशा खुद को एक सांस्कृतिक संगठन के रूप में प्रस्तुत किया है, जो देशभक्ति और हिंदू संस्कृति को बढ़ावा देता है। आज, इसके लाखों स्वयंसेवक भारत और 39 देशों में सक्रिय हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई प्रमुख बीजेपी नेता आरएसएस से जुड़े रहे हैं, जो संगठन के राजनीतिक प्रभाव को दर्शाता है। अपनी स्थापना के सौ साल बाद, आरएसएस राष्ट्र निर्माण और सामाजिक सेवा के अपने संकल्प को और मजबूत करने की दिशा में काम कर रहा है।





