हैदराबाद, डेस्क रिपोर्ट। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh) ने बुधवार को हैदराबाद में रामानुज शताब्दी समारोह में शिरकत की। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत भी शामिल हुए। इस अवसर पर जहां मोहन भागवत ने हिंदू धर्म की सनातन परंपराओं का उल्लेख किया वही शिवराज ने रामानुजाचार्य के संदेशों को हजार साल बाद भी प्रासंगिक बताया।
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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बुधवार को हैदराबाद में धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह के साथ पहुंचे। वहा उन्होने हैदराबाद की जिन्ना ईयर ट्रस्ट में स्थित 216 फीट ऊंची स्टैचू आफ इक्वलिटी यानी रामानुज की प्रतिमा के दर्शन किए। वैष्णव संत भगवत रामानुज की प्रतिमा का विगत सप्ताह ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनावरण किया था। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने तेलंगाना में साधु-संतों को मध्यप्रदेश में बनने वाली स्टेचू ऑफ़ वननेस परियोजना की जानकारी दी। शिवराज ने बताया कि ओमकारेश्वर में शंकराचार्य जी की 108 फीट ऊंची विशाल बहु धातु प्रतिमा, शंकर संग्रहालय और आचार्य शंकर अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष विद्या संस्थान का निर्माण मध्यप्रदेश सरकार करने जा रही है।
इस अवसर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुओं को उनकी शक्तियां दिलाते हुए कहा कि उनका सामर्थ्य ऐसा है कि सामने खड़े होने की हिम्मत किसी की नहीं है। उन्होंने कहा कि जिन का डर कभी-कभी हमारे दिल में आ जाता है और जिसके कारण हम कभी-कभी उल जलूल बातें कह देते हैं, उल्टी-सीधी बातें कर लेते हैं, उन्होंने हमें समाप्त करने का भरसक प्रयास कर लिया। अगर समाप्त होना होता तो हम हजार साल पहले समाप्त हो जाते। जो हम को नष्ट करने पर तुले थे उनके पैर खोखले हो रहे हैं। आज भी 5000 साल पुराना सनातन धर्म संस्कृति का वही रूप में देखने को मिलता है। डरने की प्रमुख वजह यह है कि हम अपने आप को भूल गए और अपनों को भी भूल गए।
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वही सीएम शिवराज ने इस अवसर पर वैदिक दार्शनिक, समाज सुधारक रामानुजाचार्य जी का स्मरण करते हुए कहा कि तमिलनाडु के श्री पेरम्बदूर में जन्मे रामानुजाचार्य ने भक्ति आंदोलन को पुनर्जीवित किया। रामानुजाचार्य जी के संदेश एक हजार वर्ष बाद भी प्रासंगिक हैं। उनका सम्पूर्ण दर्शन अपने आप में एक विराट संसार है जो समता, समानता और बंधुत्व की मजबूत नींव पर स्थापित है। उन्होंने समाज में वर्ग विभेद को समाप्त कर समानता के सेतु बनाने का प्रबल आग्रह किया। वे सिर्फ धर्म प्रचारक या संत ही नहीं थे बल्कि स्वंय शेषावतार थे, जिन्होंने अपनी शिक्षाओं और कार्यों से भारतीय परम्परा के शाश्वत मूल्यों को उद्घाटित किया था। विभिन्न भारतीय संस्कृतियों को जोड़कर वैदिक अद्वैत सिद्धांत को यथावत रखा। उनकी भक्ति भावना का प्रसार दक्षिण ही नहीं उत्तर भारत में भी हुआ। इस तरह वे भारतीय संत परम्परा के मुकुटमणि बने।