सुप्रीम कोर्ट ने 2 बार के ओलंपिक पदक विजेता और भारत के दिग्गज पहलवान सुशील कुमार को बड़ा झटका देते हुए उनकी जमानत रद्द कर दी है। कोर्ट ने आदेश दिया कि सुशील कुमार अगले एक हफ्ते के भीतर आत्मसमर्पण करें। यह फैसला जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत मिश्रा की बेंच ने सुनाया। यह आदेश जूनियर कुश्ती चैंपियन सागर धनखड़ के पिता की याचिका पर आया, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के मार्च 2024 के जमानत आदेश को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आरोपी के बाहर रहने से गवाहों और मुकदमे की प्रक्रिया पर असर पड़ सकता है। पीड़ित पक्ष का आरोप था कि सुशील कुमार का प्रभाव इतना है कि वे गवाहों पर दबाव डाल सकते हैं, जिससे निष्पक्ष सुनवाई प्रभावित हो सकती है।
घटना जिसने हिला दिया कुश्ती जगत
यह मामला 4 मई 2021 की रात का है, जब दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम के पार्किंग एरिया में सागर धनखड़ और उनके दो दोस्तों अमित और सोनू पर हमला हुआ। पुलिस के मुताबिक, यह हमला एक संपत्ति विवाद के चलते किया गया था। आरोप है कि सुशील कुमार और उनके साथियों ने सागर पर बेरहमी से पिटाई की, जिसके कारण उन्हें गंभीर चोटें आईं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, सागर की मौत सिर पर ब्लंट फोर्स ट्रॉमा (तेज चोट) लगने से हुई थी। इस घटना ने देशभर में खेल जगत को हिलाकर रख दिया, क्योंकि इसमें देश के सबसे चर्चित पहलवानों में से एक का नाम सामने आया था।
गिरफ्तारी और आरोप
घटना के बाद सुशील कुमार लगभग 18 दिन तक पुलिस से बचते रहे। इस दौरान वे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में घूमते रहे। 23 मई 2021 को दिल्ली पुलिस ने उन्हें मुंडका इलाके से गिरफ्तार किया। उस समय वे एक राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी से ली गई स्कूटी पर नकद रकम लेने पहुंचे थे। गिरफ्तारी के बाद सुशील कुमार को रेलवे की नौकरी से निलंबित कर दिया गया। पुलिस ने इस मामले में IPC की कई धाराओं और आर्म्स एक्ट के तहत आरोप लगाए। अक्टूबर 2022 में दिल्ली पुलिस ने अदालत में चार्जशीट दाखिल करते हुए सुशील को हमले और हत्या का “मास्टरमाइंड” बताया।
पुलिस का दावा है कि सुशील ने यह हमला इसलिए करवाया ताकि कुश्ती समुदाय में अपना दबदबा फिर से कायम कर सके। वहीं, सुशील कुमार ने अदालत में कहा कि वे निर्दोष हैं और उन पर लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं। उनका कहना है कि वे पहले ही साढ़े तीन साल जेल में बिता चुके हैं और मुकदमे की सुनवाई बेहद धीमी गति से चल रही है।
हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक
दिल्ली हाईकोर्ट ने मार्च 2024 में सुशील कुमार को जमानत दी थी। हाईकोर्ट ने माना था कि आरोपी लंबे समय से हिरासत में हैं और मुकदमे की प्रक्रिया अभी भी प्रारंभिक चरण में है। अदालत ने जमानत देते समय यह भी कहा था कि आरोपी के बाहर आने से गवाहों को प्रभावित करने के कोई ठोस सबूत नहीं हैं। लेकिन, सागर धनखड़ के पिता ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उनका कहना था कि सुशील का प्रभाव और खेल जगत में उनका नेटवर्क इतना बड़ा है कि वे आसानी से गवाहों पर दबाव डाल सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित पक्ष की इस दलील को गंभीर मानते हुए हाईकोर्ट का आदेश पलट दिया और आरोपी को 7 दिन के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।
मुकदमे की धीमी रफ्तार
मामले में कुल 222 गवाह हैं, जिनमें से अब तक सिर्फ 31 के बयान दर्ज हो पाए हैं। यह धीमी गति पीड़ित परिवार के लिए चिंता का विषय है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस देरी पर नाराजगी जताई और कहा कि लंबे समय तक सुनवाई टलने से न्याय प्रभावित होता है। अदालत ने निचली अदालत को सुनवाई की रफ्तार बढ़ाने के निर्देश दिए। सुशील कुमार के लिए यह कानूनी लड़ाई अब और कठिन हो गई है। आत्मसमर्पण के बाद उन्हें फिर से न्यायिक हिरासत में भेजा जाएगा और उनकी जमानत के लिए नए सिरे से प्रयास करने होंगे। दूसरी ओर, पीड़ित परिवार और कुश्ती जगत उम्मीद कर रहे हैं कि यह मुकदमा जल्द अपने अंजाम तक पहुंचे और दोषियों को सजा मिले। यह मामला न केवल खेल जगत में एक बड़ी छवि ध्वस्त होने का उदाहरण है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कानून के सामने चाहे कितनी भी बड़ी हस्ती क्यों न हो, जवाबदेही से बचना संभव नहीं है।





