सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तेलंगाना विधानसभा के स्पीकर को निर्देश दिया कि वे 2023 में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) से कांग्रेस में शामिल हुए 10 विधायकों की अयोग्यता से संबंधित याचिकाओं पर तीन महीने में फैसला लें। ये विधायक 2023 के राज्य चुनावों के बाद कांग्रेस में शामिल हुए थे और इनमें से एक विधायक ने 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ा था। सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाई कोर्ट के एक फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें स्पीकर को याचिकाओं पर समयबद्ध निर्णय लेने का निर्देश देने वाले आदेश को खारिज किया गया था।
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चौहान की बेंच ने कहा कि विधायकों की अयोग्यता के मामलों में देरी नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने स्पीकर को चेतावनी दी कि यदि वे कार्यवाही में देरी करते हैं, तो उनके खिलाफ नकारात्मक निष्कर्ष निकाला जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि स्पीकर दसवीं अनुसूची के तहत एक ट्रिब्यूनल की तरह काम करते हैं और उनके फैसले सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट की न्यायिक समीक्षा के दायरे में आते हैं।
दलबदल विरोधी कानून की समीक्षा
सुप्रीम कोर्ट ने संसद से दसवीं अनुसूची यानी दलबदल विरोधी कानून की समीक्षा करने का सुझाव दिया, क्योंकि स्पीकर अक्सर ऐसे मामलों में देरी करते हैं, जो लोकतंत्र के लिए खतरा हो सकता है। 2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीआरएस को हराकर 119 में से 64 सीटें जीती थीं, जबकि बीआरएस को 39, बीजेपी को 8 और AIMIM को 7 सीटें मिली थीं।
स्पीकर पर कार्रवाई न करने का आरोप
इन दलबदल के बाद राजनीतिक विवाद शुरू हो गया था और स्पीकर पर कार्रवाई न करने का आरोप लगने पर मामला हाई कोर्ट पहुंचा। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि देरी से सत्तारूढ़ पार्टी को और विधायकों को अपनी ओर करने का मौका मिल सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी देरी लोकतंत्र को कमजोर करती है और इसे रोका जाना चाहिए।





